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________________ पञ्चमः परिच्छेदः उद्बोधश्चेतनाप्राप्तिजृम्भाक्ष्युन्मीलनादिकृत् । राज्युन्मिषन्ति सन्मार्ग गते कुवलयश्रियः॥४६॥ चेतोनिमोलनं निद्रा स्वप्नेक्षितनृपाधरम् । व्यादत्ते चुम्बितु स्वास्यं गगने मोलिताक्ष्यसौ ॥४७॥ अवहित्थाकृतेर्गुप्तिः । हारच्छविप्रेक्षणदम्भभाजि प्रपश्यति प्रेमभरेऽधिनाथे । कुचौ नतास्या हृदयातिहृष्टा क्षौमाञ्चलेन स्थगिती व्यधात्सा ॥४८॥ ( अवहित्थाकृतेर्गुप्तिः ) संशयाबहुकल्पना। तर्कः संकोचनं चित्त ब्रोडा भङ्गकथादिभिः॥४९।। उद्बोध-निद्रा इत्यादिको दूर करनेवाले कारणोंसे उत्पन्न चैतन्य-लाभको उद्बोध कहते हैं । उद्बोधमें चेतनाकी पुनः प्राप्ति होती है। इसमें जंभाई लेना, आँख खोलना, अवलोकन करना इत्यादि कार्य होते हैं। यथा-राजाके सन्मार्गपर चलनेपर पृथ्वीमण्डलकी श्रीका विकास होता है अथवा चन्द्रमाके उदय होनेपर कुमुदिनीका विकास होता है ॥४६॥ निद्रा-परिश्रम इत्यादिसे उत्पन्न चित्तका बाह्य विषयोंसे पृथक् होना अथवा चित्तको निश्चलता या निश्चेष्टता निद्रा है । यथा-आँखोंको बन्द की हुई कोई नायिका स्वप्नमें अवलोकित किसी प्रियतमके अधरका पान करमे के लिए आकाशमें अपने मुखको खोलती है ॥४७॥ अवहित्था-भय या लज्जा इत्यादिके कारण आकृतिके अवगृहनको अवहित्या कहते हैं । अवहित्थाका अभिप्राय है प्रसन्न मुद्रा, काममुद्रा आदिको छिपाना। इसके कारण भय, लज्जा, गौरव आदि हैं। यथा-वक्षस्यलपर सुशोभित हारके देखने के ढोंग करनेवाले प्रेमसे भरपूर प्रियतमके देखते रहनेपर हृदय में अतिप्रसन्न होती हुई वह कामिनी नीचे मुख किये हुई रेशमी वस्त्रके अंवलके कोनेसे अपने स्तनोंको आच्छादित करने लगी ॥४८॥ . तर्क-किसी प्रकारके विचार उटनेपर सन्देह होनेसे की जानेवाली अनेक प्रकारकी कल्पनाको तक कहते हैं । तर्कका अभिप्राय है सन्देहके कारण उत्पन्न विचार । ब्रोडा-पराजय इत्यादिकी चर्चा के कारण चित्तमें उत्पन्न होनेवाले संकोचको व्रीडा कहते हैं। यह दुराचरणके कारण शिष्ट व्यक्ति में उत्पन्न होती है। सिर नीचा होना, मुंहका रंग उड़ना आदि विकार व्रीडामें उत्पन्न होते हैं ॥४९॥ यथा १. नृपादरम्-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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