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________________ २२७ पञ्चमः परिच्छेदः यानालम्ब्य रसो व्यक्तो भावा आलम्बनाश्च ते । अन्योन्यालम्बनत्वेन दम्पत्यादिषु ते स्थिताः ॥६॥ 'रसस्योपादानहेतुरालम्बनभावः । उदाहरणम्पादास्ताब्जा सुजङ्घास्तमदनशरधिश्चञ्चदूर्वस्तरम्भास्तम्भाशुम्भन्नितम्बप्रजितमनसिजक्रोडनाद्रिः सुनाभिप्रत्याख्यातस्मरक्रीडनवरसरसी श्रीकुचाद्यस्तसर्वकामश्रीस्सा सुभद्रा निधिपतिरभवत् तत्पतिः कैर्न वण्यौ ॥७॥ उद्दीप्यते रसो यैस्ते भावा उद्दीपना मताः । शृङ्गारादौ स्युरुद्यानचन्द्रिकासर आदयः ।।८।। रसैस्य निमित्तहेतुरुद्दीपनभावः। गुणालंकारचेष्टाः स्युरालम्बनगतास्तथा । तटस्थाश्चेति संप्रोक्ताः 'चतुर्थोद्दीपनस्थितिः ।।९।। भालम्बन विभाव का स्वरूप जिन्हें आलम्बन कर आधार बनाकर रस अभिव्यक्त होता है, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं । ये आलम्बन विभाव परस्पर एक दूसरेके आधार-आलम्बन होनेके कारण दम्पति आदिमें रहते हैं ॥६॥ रसके उत्पादक हेतुको आलम्बन विभाव कहते हैं। यथा-अपने पैरोंसे कमलकी शोभाको तिरस्कृत करनेवालो, सुन्दर जंघासे कामदेवके तरकशको परास्त करनेवाली, सुन्दर ऊरुसे कदलीस्तम्भकी शोभाको हरण करनेवाली, कमनीय गोल नितम्बसे कामदेवके क्रीड़ा-पर्वतको जीतनेवाली, गहरी नाभिसे कामदेवके अत्यन्त रमणीय सरोवरको तिरस्कृत करने वाली एवं अपने कमनीय स्तनोंसे कामदेवको श्रीको समाप्त करनेवाली उस सुभद्रा और उसके पतिका कोन वर्णन कर सकता है ॥७॥ उद्दीपन विभावका स्वरूप जिन भावोंसे रस उद्दीप्त-आस्वादन-योग्य होता है, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं । जैसे--शृंगार इत्यादि रसोंमें उद्यान, चन्द्रिका, सरोवर, एकान्त स्थान आदि उद्दीपन होते हैं ॥८॥ रसके निमित्तकारणको उद्दीपन विभाव कहते हैं । उद्दीपनकी चार प्रकारकी स्थिति आलम्बन-नायक, नायिकामें स्थित गुण, अलंकार, चेष्टा तथा तटस्थता इस प्रकार चार प्रकारको उद्दीपनको स्थिति मानी गयी है ॥९॥ १. रसस्यालम्बनहेतु-ख । २. सरसि-ख । ३. कामश्री स्यात्-ख । ४. वा-ख । ५. रसस्य उद्दीपनहेतु:-ख । ६. चतुर्थो-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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