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________________ -३४१ ] चतुर्थः परिच्छेदः २२१ प्रत्यर्थिकुञ्जराश्चक्रिभटैः सिंहैरिवाहताः । भूभृद्वप्रोपरिन्यस्तकमैरुन्नतलधिभिः ।।३३९।। अत्र सिंहैरिवेत्युपमालंकारेण प्रत्यर्थिकुञ्जरा इत्यत्र उपमा प्रसाध्यते इति सजातीययोरङ्गाङ्गोभावः । कुञ्जरा इति प्रत्यथिन इति समामाश्रयणात् भूभृद्वप्रोपरीत्यत्र श्लेषमूलातिशयोक्तिः ।। अरातिमहिषाः स्वैरं मज्जन्त्वत्रेति वाकृतः। 'तडागेऽजेन तत्कान्ताक्ष्यम्बुविश्चक्रिभूतले ॥३४०॥ मज्जन्तु तडागेऽत्रेति उत्प्रेक्षया अरातिमहिषा इत्यत्र रूपकं प्रसाध्यते इति विजातीययोरङ्गाङ्गिभावः । बहुतेजाः स्फुरत्कायः सर्वविद्योतनक्षमः । भानुमानिव रेजेऽसो पुरुनन्दनचक्र भृत् ।।३४१।। बहुतेजाः इति शब्दसाम्येन श्लेषः। स्फुरदित्यादौ अर्थसाम्यादुपमा। तावुपमाश्लेषौ भानुमानित्येकस्मिन्नेव शब्दे अनुप्रविष्टाविति एकवाचकानुप्रवेशेन संकरः । उदाहरण पर्वतरूपी चहारदीवारीपर पैर रखनेवाले तथा उन्नतशीलको लाँघनेवाले सिंहके समान चक्रवर्ती भरतके सैनिकोंके द्वारा शत्रुनृपतियोंके हाथो मारे गये अथवा गजराजके समान बलशालो शत्रु मारे गये ॥३३९॥ यहाँ सिंहके समान इस उपमा अलंकारसे 'शत्रुगजमें' उपमा सिद्ध होती है, अतः यहाँ सजातीयोंमें अंगांगभाव है। 'कुंजरा इति प्रत्यर्थिन में समका आश्रय ग्रहण करनेसे 'भभूद्वप्रोपरि' में श्लेषमूलक अतिशयोक्ति अलंकार है। इस तालाबमें शत्रुनृपतियों के भैसे स्वतन्त्रतापूर्वक स्नान करें, इसलिए शत्रुओंको नारियोंके नयनजल-अश्रुओंसे चक्रवर्ती भरतकी भमिपर आज-किसी व्यक्तिविशेषने तालाब बना दिया है ॥३४०॥ यहाँ तडागमें मज्जन करें, इस उत्प्रेक्षासे 'आरातिमहिषामें' रूपक सिद्ध किया गया है । अतएव विजातीयका अंगांगिभाव है। ___ अत्यन्त तेजस्वी, देदीप्यमान शारीरिक कान्तिवाला, तथा सभी प्रकाशितउल्लसित करने में समर्थ वह पुरुदेवका पुत्र भरत चक्रवर्ती सूर्यके समान सुशोभित हुआ ॥३४१॥ 'बहुतेजाः' में शब्दको समतासे श्लेष है। 'स्फुरद में अर्थ-साम्यसे उपमा १. रङ्गाङ्गिभावः-ख । २. खप्रती इति इत्यस्य स्थाने इव विद्यते । ३. समाश्रयणात् -ख । ४. तटाकोजेन-ख । ५. तटाके -ख । ६. सर्वोर्वीद्योतनक्षमः-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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