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________________ -३१४] चतुर्थः परिच्छेदः २१३३ यद्वस्तु केनचित्क; येन साधितमन्यथा । तत्तेनैवान्यकी चेद् व्याघातः स प्रभाष्यते ॥३१२॥ यद्वस्तु येन केनापि का येन साधनेन साधितं तेनैव साधनेन तद्वस्तु अन्येन कर्ताऽन्यथाक्रियते चेत् स व्याघातः। बाहुभ्यां लब्धमैश्वर्य गर्वपवंतवैरिभिः । निःसारोकृतमेताभ्यां महता चक्रपाणिना ॥३१३॥ क्रमेणानेकमेकस्मिन्नेकं वा यदि वर्तते । अनेकस्मिन् यदाधेयं पर्यायः स द्विधा यथा ॥३१४॥ अनेकमाधेयमेकस्मिन्नाधारे यदि वर्तते एकः पर्यायः। क्रमेणेत्यनेन समुच्चयालंकारव्यवच्छेदः तत्रैकत्रानेकेषां युगपद्वर्तनात् ।। यत्रानेकस्मिन्नेकं यदि स द्वितीयः। अत्रापि क्रमेणेत्यनेन विशेषालंकारविच्छेदः । तत्र अनेकत्र एकस्य युगपद्वर्तनात् । व्याघात अलंकारका स्वरूप जो वस्तु किसी कर्ताके द्वारा जिस साधनसे सिद्ध की गयी हो, वही वस्तु किसी दूसरे कर्ताके द्वारा उसी साधनसे दूसरे प्रकारसे सिद्ध की जाये, तो वहाँ व्याघात अलंकार होता है ॥३१२।। जो वस्तु जिस किसी कर्ताके द्वारा जिस साधनसे सिद्ध को गयो हो, उसी साधनसे वह वस्तु दूसरे कर्ताके द्वारा विपरीत बना दो जाये, तो ऐसे स्थलपर व्याघात अलंकार होता है। उदाहरण ___ अत्यन्त गर्विष्ठ पर्वतके समान शत्रुओंने बाहुओंसे धनार्जन किया था, पर महान् शक्तिशाली चक्रवर्तीने बाहुओंसे हो उस धनको विपरीत नष्ट कर दिया ॥३१३॥ पर्याय अलंकारका स्वरूर और भेद क्रमशः एकमें अनेक तथा अनेकमें एक आधेयका जहाँ वर्णन हो, वहां पर्याय अलंकार होता है । इसके दो भेद हैं ॥३१४॥ अनेक आधेय एक आधारपर हों तो एक पर्याय होता है। यहां क्रमशः इस कथनसे समुच्वयालंकारसे व्यावृत्ति हुई; क्योंकि उसमें अनेककी एक साथ स्थिति रहती है। जहाँ अनेक आधार में एक आधेय हो, वहाँ द्वितीय पर्याय अलंकार होता है । यहाँ भी क्रमेण इस पदसे विशेषालंकारको व्यावृत्ति होती है, क्योंकि विशेषालंकारमें अनेक आधार में एक आधेयकी एक साथ अवस्थिति होती है। १. यथाधेयम्-ख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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