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१९२ अलंकारचिन्तामणिः
[४।२४५विशेषणवैचित्र्यमूलपरिकरः कथ्यते । विशेषणे त्वभिप्राययुते परिकरो यथा। स्वयोगे चक्रिणस्तापमहितेन्दुमुखी वधुः ॥२४५।। तापहारित्वे इन्दुमुखोति विशेषणं साभिप्रायम् । विशेष्ये साभिसंधौ तु मतः परिकराङ्करः । चतुर्णामनुयोगानां प्रणेतासौ चतुर्मुखः ।।२४६।।
चतुर्मुख इति विशेष्यं चतुरनुयोगोपदेशेन साभिप्रायं परिकराङ्कुरः। परिकरापेक्षया किंचित् गूढत्वात्तभेदः।
वक्ष्यमाणोक्तयोर्यत्र निषेधाभाससंकथा । विशेषप्रतिपत्त्यर्थं साक्षेपालंकृतियथा ॥२४७।।
उक्तविषये वस्तुनिषेधः कथननिषेधश्च वक्ष्यमाणविषये सामान्यप्रतिज्ञया विशेषनिषेधः । अंशोक्तावंशान्तरनिषेध इत्याक्षेपश्चतुर्धा क्रमेण यथा ।
अब प्रसंग प्राप्त विशेषणकी विचित्रतासे होनेवाले परिकरको कहते हैं । परिकर अलंकारका स्वरूप और उदाहरण
किसी विशेष अभिप्रायसे विशेषणके प्रयुक्त होनेपर परिकर नामक अलंकार होता है । यथा-चन्द्रमुखी वधूने चक्रवर्तीके तापका हरण किया ॥२४५॥
यहाँ तापहरण करने में चन्द्रमुखी विशेषण साभिप्राय प्रयुक्त है। परिकरांकुर अलंकारका स्वरूप और उदाहरण
साभिप्राय विशेष्यके प्रयुक्त होनेपर परिकरांकुर नामक अलंकार होता है । यथा-चतुर्मुख-समवशरण सभामें चारमुख दिखलाई देनेवाले आदिब्रह्मा-ऋषभदेवने चारों अनुयोगोंका प्रणयन किया ॥२४६॥
___ यहाँ चतुर्मुख विशेषण चार अनुयोगोंके उपदेशसे अभिप्राय युक्त है, अतः परिकरांकुर अलंकार है। परिकरकी अपेक्षा कुछ गूढ़ होनेके कारण यह उससे भिन्न है। यों तो दोनों ही सादृश्यगर्भ गम्यौपम्याश्रयमूलक वर्गके विशेषण-वैचित्र्यप्रधान अर्थालंकार हैं । दोनोंका चमत्कार गुणीभूतव्यंग्य और कभी-कभी श्लेषसे पुष्ट होता है। परिकरमें साभिप्राय होता है विशेषण, पर परिकरांकुरमें साभिप्राय होता है विशेष्य । आक्षेपालंकारका स्वरूप
जहाँ कहे जानेवाले तथा कहे हुए विषयोंके विशेष ज्ञानके लिए निषेधाभासकी चर्चा हो, उसे आक्षेपालंकार कहते हैं ॥२४७॥ भाक्षेपालंकारके भेद
__ आक्षेपालंकारके चार भेद हैं-(१) कथित विषयमें वस्तुका निषेध, (२) कथनका निषेध, (३) वक्ष्यमाण विषयमें सामान्य प्रतिज्ञाका विशेष निषेध और (४) एक अंशके कहनेपर दूसरे अंशका निषेध । १. वधूः -ख । २. सामान्यप्रतिज्ञायाः-ख ।
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