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________________ -२०६] चतुर्थः परिच्छेदः १७९ चक्रिनिजितशत्रणा मुत्पेदेऽरात्रिकंतमः । दिवसेष्वपि तेजांसि नोद्बभूवुस्तरां तदा ॥२०५।। तिमिरोत्पादस्य प्रसिद्धस्य कारणं रात्रिस्तदभावेऽपि तदुत्पत्तिरुक्ता अप्रसिद्धहेतुना भीतिशोकादिना दिङ्मूढत्वादिरूपस्य तमसः सद्भावात् । दिवसे किरणानां बाहुल्येऽपि तेजसामनुत्पाद इति विशेषोक्तिः । अत्रापि कोशदण्डधैर्यादि विरहोऽप्रसिद्धो हेतुरस्त्येव ।। कार्यकारणविरोधप्रस्तुतेरसंगतिरुच्यतेकार्यकारणयोरेकदेशसंवर्तिनोरपि । भिन्नदेशस्थितियंत्र तत्रासङ्गत्यलंकृतिः ॥२०६।। विशेषोक्ति अलंकारका स्वरूप कारणरूप सामग्रीके रहनेपर भी जहाँ कार्यको उत्पत्ति न हो, उसे विशेषोक्ति अलंकार कहते हैं । ॥२०४॥ ___ यह विभावनाका प्रतिलोम है। विभावनामें चमत्कार 'फलसत्त्वके' कारण होता है और विशेषोक्तिमें फलाभावके कारण । विशेषोक्तिका अर्थ है-कारणके सद्भावमें भी कार्यकी उत्पत्ति और उक्तिका अर्थकथन । विभावना अलंकारका उदाहरण ___चक्रवर्ती भरतके द्वारा जीते गये शत्रुओंको रातके बिना भी घोर अन्धकार प्रतीत हुआ ॥२०४३॥ विशेषोक्ति अलंकारका उदाहरण भरतके शत्रुओंके समक्ष दिनमें भी प्रकाश प्रकट नहीं हुआ ॥२०५।। अन्धकारको उत्पत्तिका मुख्य कारण रात्रि है, यहाँ रात्रिके अभाव में भी अन्धकारको उत्पत्ति कही गयो है। अन्धकारके अप्रसिद्ध कारण भय और शोक इत्यादिके द्वारा दिङ्मूढतादिरूप अन्धकारका वर्णन होनेसे विभावनालंकार है। दिन में सूर्यकिरणोंको अधिकता रहनेपर भी प्रकाशको अनुत्पत्तिके वर्णन होनेसे विशेषोक्ति अलंकार है। इसमें भी कोश, दण्ड, धैर्य इत्यादिका अभाव स्वरूप अप्रसिद्ध कारण है हो । कार्य और कारणके विरोध प्रस्तुत होनेपर असंगति अलंकार होता है । इस अलंकारका स्वरूप निम्न प्रकार हैअसंगति अलंकारका लक्षण जिसमें एक स्थानमें रहनेवाले कार्यकारणको पृथक्-पृथक् देशमें स्थितिका वर्णन हो, उसे असंगति अलंकार कहते हैं ।।२०६।। १. उत्पेदे रात्रिकम् -ख। २. प्रसिद्धकारणम्-ख। ३. विरहो प्रसिद्धो-ख । खप्रतौ सर्वत्र अकार (5) प्रश्लेषो नास्ति । ४. यथासङ्गत्य -ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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