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________________ १७८ अलंकारचिन्तामणिः [ ४२०२इन्दुव्योमापगाश्रीहिमवदुरुगिरिक्षीरवार्राशिमुख्यैस्तत्सान्द्रीभावरूपैः प्रकटिततनुका मध्यलोके रराजे ॥२०२॥ अत्राधारस्य भूम्याकाशजठरस्याल्पत्वम् आधेयस्य चक्रियशसो' विपुलत्वम् । प्राच्योदोच्याः प्रतीच्याः स्वहितनृपतयो दाक्षिणात्याश्च सर्वे । हस्त्यश्वादिस्वसेनाविभवगणसमाक्रान्तकाष्ठान्तरालाः। निर्मर्यादे बले श्रीभरतनिधिपतेः क्षीरसिन्धूयमाने। लीनाः पूर्णत्वमापुर्न च बलजलधेरल्पकोणेऽपि चित्रम् ॥२०३।। आधारस्य चक्रिसेनान्धर्वैपुल्येमाधेयानां प्राच्यादि-राजसेनानामल्पत्वम् । प्रसिद्धकारणाभावे कार्योत्पत्तिविभावना । विशेषोक्तिस्तु सामग्रयां सत्यां कार्यस्य नोद्भवः ।।२०४॥ पुनः मध्यलोकमें अपने शरीरको प्रकट करती हुई अपने ही घनीभूत रूपवाले चन्द्रमा, आकाशगंगा, लक्ष्मी, हिमालय, रजताद्रि या मेरु और क्षीरसागर इत्यादि प्रधानरूपोंमें सुशोभित हुई ॥२०२॥ __ यहाँ आधार भूमि, आकाश और पातालकी लघुता तथा आधेयभूत भरत चक्रवर्ती के यशकी दीर्घताका वर्णन किया गया है। आधेय और आधारमें अनुरूपता नहीं है । आधेयकी अपेक्षा आधार लघु है, अतः आधेयकी बहुलतारूप अधिक अलंकार है। आधारकी अधिकता और आधेयकी अल्पतारूप अधिक अलंकार क्षीर समुद्र के समान प्रतीत होनेवाले संख्यातीत सेना समुद्र श्रीमान् राजा भरतकी सेनाके छोटे कोने में भी छिप जानेवाले हाथी, घोड़ा, सेना, सम्पत्ति इत्यादिसे दिशाओंके मध्यभागको आच्छादित कर देनेवाले पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिणके सभी मित्र पूर्वताको प्राप्त नहीं कर सके, यह आश्चर्य है ॥२०३॥ ___ यहाँ आधारभूत चक्री भरतके सेनासागरको अधिकता और आधेय पूर्वीय इत्यादि राजाओंकी सेनाको अल्पताका वर्णन है। विभावना अलंकारका स्वरूप प्रसिद्ध कारणके न रहनेपर कार्यको उत्पत्तिका जिसमें वर्णन हो, उसे विभावनालंकार कहते हैं ॥२०३३॥ विभावनाका अर्थ है विशिष्ट भावना या कल्पना । विभावनामें कारणके अभावका अर्थ वास्तवमें कारणका न होना नहीं है, किन्तु तात्पर्य कारणान्तरसे है। कारण तो होता है, पर लोकप्रसिद्ध या सामान्य कारणका अभाव बताकर अप्रसिद्ध कविकल्पित कारणान्तर दिखाया जाता है । इस अलंकारका मूल है अभेद अध्यवसान । १. विमलत्वम् -ख । २.. वैमल्यम्-ख. । ३. प्राच्यसेनानामल्पत्वम्.. - ।..५६ 5453 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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