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१६४ . अलंकारचिन्तामणिः
[४।१६३उदयमृच्छतीति श्लेषेणोदयाद्रयभ्युदयस्याभेदो निश्चितः। सहोक्तिप्रतिपक्षभूता विनोक्तिरुच्यते ॥
असन्निधानतो यत्र कस्यचिद् वस्तुनोऽपरम् । वस्तु रम्यमरण्यं वा सा विनोक्तिरिति द्विधा ॥१६३।। अरम्यता यथासम्यक्त्वव्रतशुद्धस्य विनोरुगुणवर्णनाम् । क्लृप्तिः काव्यस्य कीहक्षा शृण्वन्तु कविकुञ्जराः ॥१६४।।
व्रतेन वा सम्यक्त्वेन वा भद्रपरिणामेन वा 'शुद्धस्य गुणवर्णनया विना काव्यसंपदोऽशोभनत्वम् । एतेन काव्यशोभामिच्छता कविना तादशस्य राज्ञो गुणा वर्णनीया इति विधिरेव द्योतितः।
रम्यता यथाप्रकाशमाने भरताधिनाथे विना कलङ्केन सुलक्ष्मभाजिकलाप्रपूर्ण जगति प्रसन्ने नभःस्थितोऽपीन्दुरभून्मनोज्ञः ।।१६५।।
'उदयमृच्छति'में श्लेषके द्वारा उदय-पर्वत और अभ्युदय इन दोनोंमें अभेद निश्चित हुआ है।
सहोक्तिका प्रतिपक्षी विनोक्ति अलंकार है। विनोक्तिका स्वरूप और भेद
जिसमें किसी वस्तुके नहीं रहनेसे दूसरी किसी वस्तुका सौन्दर्य या असौन्दर्य वणित किया जाता है, उसे विनोक्ति अलंकार कहते हैं । और इसके दो भेद हैं ॥१६३।।
तात्पर्य यह है कि एक वस्तुके विना दूसरी वस्तुको शोभन या अशोभन बतलाया जाना, विनोक्ति अलंकार है। विनोक्तिके दो भेद हैं-(१) शोभन-विनोक्ति, (२) अशोभन-विनोक्ति । अरम्यता या अशोभन-विनोक्तिका उदाहरण
हे श्रेष्ठ कविवर, सुनो, सम्यक्त्वव्रतसे विशुद्ध काव्यके विस्तृत गुणोंके वर्णनके विना काव्य रचना कैसी होगी ? ॥१६४॥
व्रतसे या सम्यक्त्वसे अथवा अच्छे परिणामसे शुद्ध काव्यत्वके गुण वर्णनके विना काव्यरूपी सम्पत्ति अच्छी नहीं लग सकती है। अतएव काव्यकी शोभाको चाहनेवाले कविको सम्यक्त्व गुणविशिष्ट राजाके गुणोंका वर्णन करना चाहिए। जो सम्यक्त्व गुणसे रहित है, उसके गुणोंका वर्णन करनेसे सत्काव्य नहीं हो सकता है। रम्यता विशिष्ट-शोमन विनोक्ति का उदाहरण
कलंकहीन अच्छे लक्षणोंसे युक्त सभी कलाओंसे विशिष्ट चक्रवर्ती भरतके
१. शुद्धगुणवर्णनया.... -ख। २. काव्यसम्पदो शोभनत्वं -ख । ३. विधेरिव -ख ।
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