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________________ अलंकारचिन्तामणिः [४।१४२सम्प्रत्यपापाः स्म इति 'प्रतीत्यै वह्नाविवाह्नाय मिथः प्रविष्टाः । यत्कायकान्तौ कनकोज्ज्वलायां सुरा विरेजुस्तमुपैमि शान्तिम् ॥१४२॥ वह्नाविवेति कविप्रौढिकल्पितत्वान्नोपमाशङ्का । तदुक्तम्कल्पना काचिदौचित्याद् यत्रार्थस्य सतोऽन्यथा। द्योतितेवादिभिः शब्दैरुत्प्रेक्षा सा स्मृता यथेति ।। उत्प्रेक्षा बहुविद्या संक्षिप्ता ग्रन्थविस्तारभीरुत्वात् । अतएव सर्वत्र संक्षेपः। अस्याल्पप्रपञ्चो यथा इयं जातिफलोत्प्रेक्षा नूनं चक्रिभुजद्वयम् । षट्खण्डपृथिवी हंतृस्तम्भीभवितुमायतम् ।।१४३।। अत्र स्तम्भस्य जातित्वेन स्तम्भीभवितुमिति जाते: फलत्वम् । क्रियाके प्रतिपादक शब्दोंका जिसमें प्रयोग रहता है, उसे वाच्योत्प्रेक्षा और जिसमें उपर्युक्त शब्दोंके प्रयोग न रहनेपर भी उनका अर्थ झलकता हो, उसे गम्यमानोत्प्रेक्षा कहते हैं। उदाहरण जिनकी सुवर्णके समान उज्ज्वल शरीरकी कान्तिके मध्य देवलोक ऐसे सुशोभित होते थे, मानो इस समय हम निर्दोष हैं, ऐसा परस्परमें विश्वास कराने के लिए अग्निमें ही प्रविष्ट हुए हों-अग्नि-परीक्षा ही दे रहे हों, मैं उन श्री शान्तिनाथ भगवान्की शरणको प्राप्त होता हूँ ॥१४२॥ ___'वह्नी इव' में कवि प्रौढोक्ति कल्पित होनेके कारण उपमाकी शंका नहीं की जा सकती है। कहा भी है प्रस्तुत अर्थके औचित्य से जिस अलंकार में 'इक' इत्यादि अव्ययोंके द्वारा किसी अन्य अर्थको कल्पना की जाती है, उसे 'उत्प्रेक्षा' कहते हैं । ___ 'उत्प्रेक्षा' के बहुत भेद हैं, किन्तु ग्रन्थ विस्तारभयसे उसे संक्षिप्त किया गया है। अतएव सर्वत्र अलंकारोंमें संक्षेप किया है। यहाँ 'उत्प्रेक्षा' का थोड़ा विस्तार भी वणित किया जाता है। जातिफलोत्प्रेक्षाका उदाहरण निश्चय ही चक्री भरतके दोनों बाहु षट्खण्डवाली पृथ्वीको धारण करनेके लिए दो विशाल स्तम्भ हैं ॥१४३।। यह जाति फलोत्प्रेक्षाका उदाहरण है। यहाँ स्तम्भके जाति होनेके कारण 'स्तम्भी भवितुम्' में जातिफलत्व उत्प्रेक्षा है। १. २. प्रतीतै -ख । २. कविप्रीढितकल्पित.... -ख । ३. अस्या अल्पप्रपञ्चो यथा' क-ख । ४. हय.... ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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