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________________ १४२ [४।१०० अलंकारचिन्तामणिः पर्यायेणोपमानोपमेयत्वमवमृश्यते । द्वयोर्यत्र स्फुटं सा स्यादुपमेयोपमा यथा ॥१००॥ अर्थः काम इव स्फीतः कामोऽर्थ इव पुष्कलः। धर्मस्ताविव संसिद्धस्तौ धर्म इव चक्रिणि ॥१०॥ ऐषां केषांचिदन्योऽन्योपमैव ॥ सदशस्य पदार्थस्य सदृग्वस्त्वन्तरस्मृतिः । यत्रानुभवतः प्रोक्ता स्मरणालंकृतिर्यथा ॥१०२।। भरताख्यमहीशेन पालितोऽयं प्रजागणः । पुरुराजस्य तां वृत्ति स्मरति स्म जगद्गुरोः ॥१०३॥ भेदाभेदसाधारणसाधय॑हेतुकालङ्कारास्तूक्ताः ॥ उपमेयोपमाका लक्षण - जिस अलंकारमें दो वस्तुओंकी पर्यायेण उपमानता और उपमेयता हो सकती है, उसे उपमेयोपमालंकार कहते हैं ॥१०॥ आशय यह है कि जहाँ उपमेय और उपमान एक दूसरेके उपमान और उपमेय होते हैं, वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है। उपमेयोपमाका उदाहरण भरत चक्रवर्ती में धन कामके समान बढ़ा है तथा काम विपुल धनके समान बढ़ा है। धन और काम, इन दोनोंके समान धर्म बढ़ा है और वे दोनों धर्मके समान बढ़े हुए हैं ॥१०१॥ मतान्तरसे उक्त उदाहरणमें अन्योऽन्योपमा भी मानो गयो है । स्मरणालंकारका लक्षण जिस अलंकारमें समान पदार्थके अनुभव से उसके समान दूसरे पदार्थका स्मरण हो जाय, तो उसे स्मरणालंकार विद्वानों ने कहा है ॥१०२।। अभिप्राय यह है कि किसी वस्तुके दर्शनसे तत्सदृश पूर्वानुभूतवस्तुका स्मरण होना ही स्मरणालंकार है। जहाँ किसी सुन्दर या असुन्दर वस्तुके देखनेसे पूर्वानुभूत किसी सुन्दर या असुन्दर वस्तुका स्मरण हो आवे, वहाँ स्मरणालंकार माना जाता है। स्मरणालंकारका उदाहरण भरत नामक नृपतिसे पालित प्रजागण जगद्गुरु पुरुदेव नामक नृपतिके व्यवहारका स्मरण करता है ॥१०३।। भेदाभेद साधारण साधर्म्यहेतुक अलंकारोंका प्रतिपादन किया गया है । १. खातो अशुद्धः पाठः । २. एषु-ख। ३. तूक्ताः इत्यस्य स्थाने खप्रती सूक्ताः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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