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________________ चतुर्थः परिच्छेदः १३१ लुप्ता समासगाऽनुक्तेवादिः संभाषिता यथा । भरताधिपचारित्रं सतां शीतांशशीतलम् ॥५३॥ लुप्ता समासगानुक्तधर्मेवाद्युपमानिका । भरतेशो बभौ लोके सौधर्मेन्द्रपराक्रमः ॥५४॥ अत्र सौधर्मेन्द्रपराक्रम इव पराक्रमो यस्येति धर्मेवाद्युपमानं लुप्तमिति लुप्तोपमा ॥ साधारणधर्मस्वीकारे द्वैविध्यमुपमेयोपमानत्वेन युगपत् साधर्म्यनिर्देशः । तद्वयगतत्वेन पृथगुपादानं वा। पुनः पृथगुपादानं द्विधा। वस्तुप्रतिवस्तुभावेन बिम्बप्रतिबिम्बभावेन चेति । अर्थस्यैकस्यैव शब्दद्वयेन कथनं वस्तुप्रतिवस्तुभावः॥ अर्थद्वयस्य पृथगुपादानं बिम्बप्रतिबिम्बभावः ॥ तत्र सकृत्साधर्म्यनिर्देशो यथा। राजानो नतमुनिः सेवन्ते भरतेश्वरम् । गुणानामाकरं पूज्यं पुरुं देवा इवाभितः ॥५५॥ अनुक्तधर्मा इवादि सामान्यवाचक लुप्तोपमा समासमें रही हुई अनुक्त इवादि सादृश्यवाचक शब्दावली कही गयी है। यथा-भरतका चरित्र सज्जनोंके लिए चन्द्रकिरणके समान शीतल है ॥५३॥ समास स्थित अकथित इवादि शब्द तथा लुप्तोपमानवाली लुप्तोपमा समासस्थित अकथित इवादि शब्द तथा लुप्तोपमानवाला लुप्तोपमालंकार कहा गया है । यथा-सौधर्म इन्द्रके पराक्रमके समान पराक्रमवाला भरतेश इस संसार में सुशोभित हुआ ॥५४॥ यहाँ 'सौधर्मेन्द्रके पराक्रमके समान पराक्रम है जिसका' पदमें सामान्य धर्म, इवादि शब्द और उपमानके लोप होनेसे लुप्तोपमा है। साधारण धर्मके स्वीकार करने पर दो प्रकारका होता है। उपमेय और उपमानमें रहने से एक ही साथ सादृश्यका निर्देश किया गया है। अथवा उन दोनों-उपमेय और उपमानमें रहनेके कारण पृथक कथन है । यह पृथक् कथन भी दो प्रकारका है-(१) वस्तु-प्रतिवस्तु भावसे और (२) बिम्ब-प्रतिबिम्ब भावसे । एक ही अर्थको दो शब्दों द्वारा कथन करनेको वस्तु-प्रतिवस्तुभाव होता है और दो अर्थोंको पृथक्-पृथक् शब्द द्वारा कथन करनेको बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है । एकबार साधर्म्य निर्देशका उदाहरण नतमस्तक देवगण जिस प्रकार चारों ओरसे गुणोंकी खान परम पूजनीय पुरुदेव-आदि तीर्थकरकी सेवा करते हैं; उसी प्रकार नतमस्तक नृपतिगण गुणोंकी खान, परम पूजनीय भरतेश्वर-भरत चक्रवर्तीकी सेवा करते हैं ॥५५॥ - - १. उपमानोपमेयगतत्वेन युगपत्-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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