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________________ १२० अलंकारचिन्तामणिः [ ४१६व्याघातश्चापि पर्यायः सूक्ष्मोदात्तद्वयं तथा। परिवृत्तिस्तथा कारणमालेकावली द्वीनम् ॥१६॥ मालादीपकसारी च तथा संसृष्टिसंकरौ । उभयालंकृतिस्त्वत्र संसष्टयन्तर्भवा मता ॥१७॥ तत्र प्रथममनेकालंकारहेतुत्वादुपमा निगद्यते ॥ वय॑स्य साम्यमन्येन स्वतःसिद्धेन धर्मतः। भिन्नेन सूर्यभीष्टेन वाच्यं यत्रोपमैकदा ॥१८॥ स्वतो भिन्नेन स्वतः सिद्धेन विद्वत्संमतेन अप्रकृतेन सह प्रकृतस्य यत्र धर्मतः सादृश्यं सोपमा। स्वतः सिद्धनेत्यनेनोत्प्रेक्षानिरासः ॥ अप्रसिद्धस्याप्युस्प्रेक्षायामँनुमानत्वघटनात् ॥ स्वतो भिन्नेनेत्यनेनानन्वयनिरासः । वस्तुन एकस्यैवानन्वये उपमानोपमेयत्वघटनात्। सूर्यभीष्टेनेत्यनेन हीनोपमादिनिरासः। समुच्चय, (५४) समाधि, (५५) भाविक, (५६) प्रेयस्, (५७) रसी ( रसवद् ), (५८) ऊर्जस्वी, (५९) प्रत्यनीक, (६०) व्याघात, (६१) पर्याय, (६२) सूक्ष्म, (६३) उदात्त, (६४) परिवृत्ति, (६५) कारणमाला, (६६) एकावली, (६७) द्विकावली, (६८) माला, (६९) दीपक, (७०) सार, (७१) संसृष्टि और (७२) संकर । उभयालंकार संसृष्टिके अन्तर्गत माना गया है ॥८-१७॥ सर्व प्रथम अनेक अलंकारोंका कारण होनेसे उपमाका लक्षण कहा जाता है। उपमालंकारका लक्षण स्वतः पृथक् तथा स्वतः सिद्ध आचार्योंके द्वारा अभिमत अप्रकृतके साथ प्रकृतका एक समय धर्मतः सादृश्य वर्णन करना उपमा अलंकार है ।।१८।। स्वतः से भिन्न और स्वतःसिद्ध विद्वत्सम्मत अप्रकृतके साथ प्रकृतका जहाँ धर्मरूपसे सादृश्य रहे, वहां उपमा अलंकार होता है। इस लक्षणमें 'स्वतःसिद्धेन' यह विशेषण नहीं दिया जाता तो उत्प्रेक्षामें भी उपमाका लक्षण घटित हो जाता। क्योंकि स्वतः अप्रसिद्धका भी उत्प्रेक्षामें अनुमान उपमानत्व होता है। इसी प्रकार 'स्वतो. भिन्नेन' यदि लक्षण में समाविष्ट न किया जाता तो 'अनन्वय में भी उपमाका लक्षण प्रविष्ट हो जाता, क्योंकि एक ही वस्तुको उपमान और उपमेयरूपसे अनन्वयमें कहा जाता है । यदि उपमाके उक्त लक्षणमें 'सूर्यभीष्टेन' पदका समावेश नहीं किया जाता तो हीनोपमामें भी उपमाका उक्त लक्षण प्रविष्ट हो जाता, अतः उपमाके लक्षणमें 'सर्यभीष्टेन'-आचार्याभिमत पद दिया गया है। १. द्वयम्'-ख । २. गुणात् धर्मतः-ख । ३. -उपमानत्वघटनात्'-क-ख। ४. खप्रती वस्तुनः इति पदं नास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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