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________________ ११४ अलंकारचिन्तामणिः [४७अतिशयोत्प्रेक्षाद्वयमध्यवसायमूलम् । विषमविशेषोक्तिविभावना चित्रा. सङ्गत्यन्योन्यव्याघाततद्गुणभाविकविशेषाणां विरोधमूलत्वम् । परिसंख्यार्थापत्तिविकल्पयथासंख्यसमुच्चयानां वाक्यन्यायमूलत्वम् । उदात्तविनोक्तिस्वभावोक्तिसमसमाधिपर्यायपरिवृत्तिप्रत्यनीकतद्गुणानां लोकव्यवहारमूलत्वम् । अर्थान्तरन्यासकाव्यलिङ्गानुमानानि तर्कन्यायमूलानि । ___ दीपकसारकारणमालेकावलोमालानां शृङ्खलावैचित्र्यहेतुकत्वम्। मोलनवक्रोक्तिव्याजोक्तयः अपह्नवमूलाः ॥ परिकरसमासोक्ती विशेषणवैचित्र्यहेतू । इदानीमलङ्काराणां परस्परभेदः कथ्यते। परिणामरूपकयोरारोपगर्भत्वेऽप्यारोप्यस्य प्रकृतोपयोगानुपयोगाभ्यां भेदः। उल्लेखरूपकयोरारोपगोचरस्यारोप्यस्व अलंकारोंके मूलत्वका निरूपण अतिशयोक्ति और उत्प्रेक्षामें अध्यवसाय मूलक सादृश्य होता है। विषम, विशेषोक्ति, विभावना, चित्र, असंगति, अन्योन्य, व्याघात, तद्गुण, भाविक और विशेषालंकारों में विरोधमूलक सादृश्य होता है। परि संख्या, अर्थापत्ति, विकल्प, यथासंख्य और समुच्चय अलंकारोंमें वाक्यन्यायमूलत्व पाया जाता है। उदात्त, विनोक्ति, स्वभावोक्ति, सम, समाधि, पर्याय, परिवृत्ति, प्रत्यनीक, तद्गुण इन अलंकारों में लोकव्यवहारमूलत्व पाया जाता है । अर्थान्तरन्यास, काव्यलिंग, और अनुमान अलंकारोंमें तकन्यायमूलत्व रहता है। दीपक, सार, कारणमाला, एकावली और माला अलंकारोंमें शृंखला वैचित्र्यमूलत्व रहता है। मीलन, वक्रोक्ति, और व्याजोक्ति अलंकारोंमें अपह्नव मूलकता पायो जातो है । परिकर और समासोक्तिमें विशेषण वैचित्र्यहेतुकता विद्यमान रहती है। तात्पर्य यह है कि सादृश्यके अतिरिक्त अलंकारोंके वर्गीकरणके आधार ग्रन्थकार ने निम्नलिखित निर्धारित किये हैं (१) अध्यवसायमूलकत्व (२) विरोधमूलकत्व (३) वाक्यन्यायमूलकत्व (४) लोकव्यवहारमूलकत्व (५) तर्कन्यायमूलकत्व (६) शृंखलावैचित्र्य (७) अपह्नवमूलकत्व (८) विशेषणवैचित्र्यहेतुकत्व ।। अलंकारों में परस्पर भेद : परिणाम और रूपकमें भेद परिणाम और रूपक इन दोनोंमें आरोप किया जाता है। परिणाममें आरोप्य विषयका प्रकृतमें उपयोग होता है, पर रूपकमें उसका उपयोग नहीं होता, यही भेद है । उल्लेख और रूपकमें भेद , उल्लेख और रूपकालंकारोंमें आरोप प्रत्यक्षका आरोप्य स्वभावके सम्भव और असम्भवके कारण दोनों में भेद है । अभिप्राय यह है कि दोनों आरोपमूलक अभेद प्रधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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