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________________ ७४ अलंकारचिन्तामणिः [२११४६एकाक्षरच्युतकयुतेनोत्तरं तद्वत् । अस्य श्लोकस्य प्रश्नेषु तृतीयतृतीयाक्षराण्यपनीय काकलीस्वरभेदेध्विति श्लोकस्थोत्तरेषु तृतीयतृतीयाक्षराण्यादाय तत्र मिलिते सत्युत्तरं भवति ।। का कः श्रयते नित्यं का किं सुतप्रियाम् ॥ 'काननेदानी चररतम् ॥ एकोत्तराक्षरच्युतपादम् ॥ कानन कुत्सितवदन। चर रतं रतविशेषः । एतो ध्वन्यौँ । कामुकः श्रयते नित्यं कामुकी सुरतप्रियाम् । कान्तानने वदेदानी चतुरक्षरविच्युतम् ॥१४६।। संबुध्यसे कथं देवि किमस्त्यर्थं क्रियापदम् । शोभा च कीदृशि व्योम्नि भवतीदं निगद्यताम् ॥१४७ । निहनुतैकालापकम् । अस्त्यर्थम् अस्तीत्यर्थो यस्य तत् । भवति इति संबोध्ये । भवतीति क्रियापदम् । भवति भानि नक्षत्राण्यस्येति तस्मिन् । प्रहेलिकाप्रभृति इदं सर्व पूर्वपुराणे "दिक्कन्याभिर्मरुदेव्यालस्यपरिहारगोष्ठ्यामुक्तम् । एकाक्षरच्युतक और एकाक्षरच्युतक है। प्रश्न पूर्वश्लोकके ही हैं। इस श्लोकके तृतीय अक्षरको हटाकर उसके स्थानमें प्रथम श्लोकके तृतीय अक्षरका उपयोगकर उत्तर दिया गया है । ____ 'किसो वनमें एक कौआ सम्भोगप्रिय काकली-कौवीका निरन्तर सेवन करता है।' इस पद्यमें चार अक्षर कम हैं, उन्हें पूराकर उत्तर दीजिए। प्रथमादि पादोंमें एक, दो, तोन और चार अक्षर क्रमशः च्युत-हीन हैं। कानन-कुत्सित मुख । चर-रत-रतिविशेषमें सलग्न । इनका ध्वन्यर्थ हुआ कान्तानने-सुन्दर मुखवाली! कामीपुरुष सम्भोगप्रिय कामिनीका सदा सेवन करता है । यह पद्य एकाक्षर च्युतक है ॥१४६३॥ निह तैकालापकका उदाहरण हे देवि ! तुम्हारा सम्बोधन क्या है ? सत्ता अर्थको प्रकट करनेवाला क्रियापद कौन-सा है ? कैसे आकाशमें शोभा होती है ? यह बतलाइए ॥१४७६॥ उत्तर-'भवति' मेरा सम्बोधन है, ( भवतो शब्दका सम्बोधन एकवचनमें 'भवति' रूप बनता है)। सत्ता अर्थको व्यक्त करनेवाला क्रियापद भी 'भवति' है । यह V भूसे लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचनमें बनता है । भवति-भानि-नक्षत्र १. कनने -ख । २. एकोत्तराच्युतपादम् -ख। प्रथमादिपादेषु एकद्वित्रिचतुरक्षराणि क्रमेण च्युतानि । प्रथमप्रती पादभागे। ३. अस्त्यर्थम् इति पदं खप्रतो नास्ति । ४. नक्षत्राण्यस्मिन्निति तस्मिन् –ख । ५. दिक्कन्यकाभिः -क-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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