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________________ ३४ अलंकारचिन्तामणिः शब्दार्थ भेदतोऽवश्यं प्रभिन्नं सुविरच्यताम् । वचोलिङ्गविभक्तीनां भेदस्तुच्येत ' शक्तितः ॥२९॥ २ यत्र प्रश्ने निबध्येते विशेषणविशेष्य के ' । भेद्यभेदकमाख्यातं तदिदं सूरिभिर्यथा ॥ ३९ ॥ केशेषु प्रसितः कायतलव्यपगमस्पृहः । कः क्लेशमेति कस्तुष्टः प्रासादतल निष्ठितः ॥ ३१ ॥ कुमज्जनः । कुत्सितस्नानः । भूसहितो राजा । भेद्यभेदकजातिः । यत्पृष्टं दीर्घवृत्त ेन युताल्पाक्षरमुत्तरम् । तदोजस्वीति भाषन्ते पण्डिताः खण्डितार्तयः ||३२|| प्रभिन्नकके विषय में अन्य आवश्यक तथ्य --- शब्द और अर्थके भेदसे प्रभिन्नककी रचना अवश्य करनी चाहिए | वचन, लिंग और विभक्तियोंके भेदको भी यथाशक्ति कहना चाहिए ॥ २९ ॥ [ २२९ भेद्य-भेदक चित्रालङ्कारका लक्षण जिस प्रश्न में विशेषण और विशेष्यका निबन्धन किया गया हो, विद्वानोंने उसे भेद्य भेदक कहा है ॥ ३० ॥ उदाहरण- केशोंके संवारने में संलग्न, शरीरके निचले भाग में स्पृहा रहित कौन व्यक्ति क्लेश प्राप्त करता है और प्रासाद भवन के उपरिभाग में बैठा हुआ कौन सन्तुष्ट होता है ? ॥ ३१ ॥ उत्तर—– कुमज्जन, –“पुरुषपक्षे कुत्सितं स्नानं यस्य सः कण्ठस्थान: " कुत्सित स्नान - कण्ठस्नान करनेवाला पुरुष क्लेश प्राप्त करता है और 'राजपक्षे कुरस्यास्तीति कुमान् कुमश्चासौ जनश्च पृथिव्या सहितो राजा' - पृथ्वी सहित राजा प्रासादोपरि स्थित होनेसे सन्तुष्ट होता है || ओजस्वी जाति - चित्रालङ्कारका लक्षण -- लम्बे समासवाले पदसे प्रश्न किया गया हो और अल्पाक्षरपदसे उत्तर दिया गया हो तो उसे दुःख दूर करनेवाले पण्डितोंने ओजस्वी अलंकार कहा है ॥ ३२ ॥ १. भेदस्तु उच्येत - ख । २. विशेष्यते - ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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