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अलंकारचिन्तामणिः समस्यापूरणं कुर्यात्परशब्दार्थगोचरम् ।
पराभिप्रायवेदित्वान्न कविर्दोषमृच्छति ॥९९।। अस्ति स्तः सन्ति तस्याः कुचकलशतटे नास्ति न स्तो न सन्ति । एतत्समस्यापूरणं यथा
शुभ्रश्रीहारयष्टिः शिशिरकरकलाकान्तिदीप्तिद्विरेफास्सारामोदाब्जशङ्काजठरगवृषभप्राभवात्कालिमास्याः । श्रीमन्नाभिप्रियाया नखरहतिकरोन्मर्दने धर्मपाथांस्यस्ति स्तः सन्ति तस्याः कुचकलशतटे नास्ति न स्तो न सन्ति ॥१०॥
कर काव्यरचना नहीं करनी चाहिए। ऐसा करनेसे वह लोकमें पश्यतोहर-चोर कहलाता है ॥ ९८ ॥
समस्यापूर्तिकरनेका औचित्य
कवि दूसरे कवियोंके शब्द और अर्थ लेकर समस्यापूर्ति कर सकता है । समस्या पूर्ति में पराभिप्राय-अन्य कवियोंके भावकी अभिज्ञता होनेसे दोष नहीं माना जाता है। तात्पर्य यह है कि अन्य कवियोंके शब्द या अर्थका आधार ग्रहण करनेपर भी समस्यापूर्ति में कविको चोर नहीं माना जा सकता है। समस्यापूर्ति करना कविकर्ममें शामिल है ॥ ९९ ॥
समस्यापूर्तिका उदाहरण
गर्भस्थ आदि तीर्थकर पुरुदेवके प्रभावसे श्रीमान् नाभिराजकी प्रिया इस मरुदेवीके कुचकलशके प्रान्तभागमें शुभ्रहार यष्टिको कान्ति व्याप्त है अर्थात् शुभ्रहारको कान्तिसे कुचकलश शोभित हो रहे हैं । कुचकलशोंकी अत्यन्त सुगन्धके कारण कमलकी भ्रान्ति होनेसे भ्रमर एकत्र हो गये हैं। यहां कविने कृष्ण चूचुकका वर्णन करते हुए कुचकलशको सुगन्धि युक्त और कृष्ण वर्णके चूचुकोंको भ्रमर कहा है तथा भ्रान्तिमानका आरोप किया है।
नाभिप्रिया मरुदेवीके कुचकलशतटमें कालिमा नहीं है। गर्भावस्थामें स्तन कृष्णवर्णके हो जाते हैं, पर आदि तीर्थकरके गर्भ में रहनेके कारण मरुदेवीके स्तनमें कालिमाका अभाव है और न नखक्षत और करोन्मर्दन सम्बन्धी पीड़ा ही है । गर्भावस्था की श्रान्तिके कारण उत्पन्न होनेवाले स्वेदबिन्दु भी नहीं हैं। "यहां अस्ति स्तः सन्ति तस्याः कुचकलशतटे नास्ति स्तो न सन्ति" द्वारा समस्या पूर्ति की गयी है ॥ १०॥
१. शशिकला-ख।
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