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________________ -९८ ] प्रथमः परिच्छेदः भात्सुखं जादूजा सात्तु क्षयो रैशुभदौ नमो। वदन्ति देवतां शब्दाः भद्रादीनि च ये तु ते ॥१५॥ गणाद्वा वर्णतोऽवाऽपि नैव निन्द्याः कवीश्वरैः। एतद्वर्णाभिविन्यासं काव्यं पद्यादितस्त्रिधा ॥१६॥ सच्छन्दोऽच्छन्दसी पद्यगद्ये मिश्रं तु तद्युगम् । निबद्धमनिबद्धं वा कुर्यात्काव्यमुखं कविः ॥२७॥ आशीरूपं नमोरूपं वस्तुनिर्देशनं च वा। स्वकाव्यमुखे स्वकृतं पद्यं निबद्धं परकृतमनिबद्धम् । . अन्यकाव्यसुशब्दार्थच्छायां नो रचयत्कविः ॥ स्वकाव्ये सोऽन्यथालोके पश्यतोहरतामटेत् ।।९८॥ काव्यादिमें भगणके होनेसे सुख, जगणके प्रयोगसे रोग, सगणसे विनाश, नगणके प्रयोगसे धनलाभ और मगणके प्रयोगसे शुभफलकी प्राप्ति होती है । देवता, भद्र या मंगल प्रतिपादक शब्द कवियों द्वारा निन्द्य नहीं माने गये हैं। आशय यह है कि अशुभ और निन्द्य वर्ण या गण भी देवता, भद्र और मंगलवाचक होनेपर त्याज्य नहीं हैं ॥ ९५ ॥ प्रवर कवियोंके द्वारा गण अथवा वर्णसे भी भद्र, मंगल इत्यादि अर्थके प्रतिपादन करनेवाले शब्द अशुभ फलप्रद नहीं माने गये। अतः वे काव्यादिमें निन्द्य नहीं हैं। काव्यके भेद इस प्रकार वर्गों की रचनासे सुन्दर काव्य पद्य, गद्य और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका होता है ।। ९६ ॥ काव्यके तीन भेद और रचना करनेकी विधि काव्यके तीन भेद है-( १ ) छन्दोमय, ( २ ) अछन्दोमय, ( ३ ) और गद्यपद्य मिश्रित । कवि काव्यका प्रारम्भ निबद्ध-स्वरचित और अनिबद्ध-पर रचित गद्य, पद्य या मिश्रित रूप -चम्पूसे करता है । आशय यह है कि पद्य, गद्य और चम्पूके भेदसे काव्य तीन प्रकारका होता है। कवि काव्य रचनाका प्रारम्भ अपने द्वारा रचित छन्द या गद्यसे अथवा अन्य कवियों द्वारा रचित छन्द या गद्यसे करता है ॥ ९७ ॥ काव्यारम्मका नियम काव्यका आरम्भ आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक और वस्तु निर्देशात्मक रूप मंगलसे करना चाहिए। कायका प्रारम्भ स्वरचित छन्द या गद्यसे करना निबद्ध और अन्य कवियों द्वारा रचित छन्द या गद्यसे करना अनिबद्ध कहलाता है । ___कविको अपनी रचनामें दूसरेके काव्यके सुन्दर शब्द या अर्थको छायाको ग्रहणFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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