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________________ -११] प्रथमः परिच्छेदः प्रतिभोज्जीवनो नानावर्णनानिपुणः कृती। नानाभ्यासकुशाग्रोयमतिव्युत्पत्तिमान् कविः ।।८॥ व्युत्पत्त्यभ्याससंस्कार्या शब्दार्थघटनाघटा। प्रज्ञा नवनवोल्लेखशालिनी प्रतिभास्य धीः ॥९॥ छन्दोऽलंकारशास्त्रेषु गणिते कामतन्त्रके। शब्दशास्त्रे कलाशास्त्र तर्काध्यात्मादितन्त्रके ॥१०॥ पारम्पर्योपदेशेन नैपुण्यपरशालिनी। प्रतिपत्तिविशेषेण व्युत्पत्तिरभिधीयते ॥११॥ कविकी योग्यता प्रतिभाशाली, विविध प्रकारको घटनाओंके वर्णन करने में दक्ष, सभी प्रकारके व्यवहारमें निपुण, नानाप्रकारके शास्त्रोंके अध्ययनसे कुशाग्रबुद्धिको प्राप्त एवं व्याकरण, न्याय आदि ग्रन्थोंके अध्ययनसे व्युत्पत्तिमान् कवि होता है। आशय यह है कि कविकी योग्यतामें आचार्यने प्रतिभा, वर्णनक्षमता, अनेक शास्त्रोंका अभ्यास एवं व्युत्पत्तिको परिगणित किया है ॥८॥ काव्यरचनाके हेतु ग्रन्थोंके अभ्यास-अध्ययनसे संस्कृत-उत्पन्न व्युत्पत्ति, शब्द और अर्थयुक्त रचनाके गुम्फनको क्षमतारूपी प्रज्ञा एवं प्रतिक्षण नये-नये विषयोंको कल्पित करनेकी शक्तिरूपी बुद्धि प्रतिभा कहलाती है। काव्यरचनामें व्युत्पत्ति, प्रज्ञा और प्रतिभा ये तीन कारण हैं। यहां यह ध्यातव्य है कि मम्मट आदि आचार्योंने जिसे निपुणताको संज्ञा दी है, उसे ही प्रकारान्तरसे प्रज्ञा कहा है। निपुणता शब्दका अभिप्राय शब्द और अर्थयुक्त काव्यरचना करनेकी क्षमता से है। प्रज्ञा और निपुणता में अन्तर है; प्रज्ञामें निपुणतासे अधिक भाव निहित है। कल्पनाजन्य सभी प्रकारके चमत्कारोंका समावेश प्रज्ञामें होता है ॥९॥ व्युत्पत्तिका स्वरूप __ छन्दश्शास्त्र, अलंकारशास्त्र, गणित, कामशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, शिल्पशास्त्र, तर्कशास्त्र-न्यायशास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्रोंमें गुरुपरम्परासे प्राप्त उपदेश द्वारा अर्जित निपुणता-बहुज्ञताको व्युत्पत्ति कहते हैं ।।१०-११॥ १. लौकिकव्यवहारेषु निपुणता व्युत्पत्तिः-'ख'प्रती टिप्पण्याम् । २. घटनास्फुटा-क। ३. परिशालिनी-क । ४. काव्यविच्छिक्षया पुनः पुनः प्रवृत्तिरभ्यासः। ५. लोकव्यवहारेषु निपुणता व्युत्पत्तिः । ६. त्रैकालिकी बुद्धिः प्रज्ञा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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