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प्रस्ताव ६ : उत्तम-राज्य
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योगों के नष्ट होने के पश्चात् शैलेशी मार्ग आयेगा, इस मार्ग पर चलना । इस पर चलकर ही तू अन्त में निर्वृत्ति नगरी पहुँच सकेगा । यह नगरी सर्वदा स्थिर रहती है और यहाँ किसी प्रकार की रुकावट या पीड़ा नहीं होती, इसीलिये इसका नाम निर्वृत्ति नगरी रखा गया । यदि तू उदासीनता नामक राज्य मार्ग को छोड़कर इधर-उधर नहीं भटकेगा तो तुझे उपरोक्त सभी स्थान क्रमशः प्राप्त होते जायेंगे । इस मार्ग पर चलते हुए तू अपने पास समता नामक योगनलिका ( दूरबीन ) अवश्य रखना और इस योगनलिका के प्रयोग द्वारा तू दूर के पदार्थों की स्थिति भी बराबर देखते रहना । फिर तू स्वयं ही सभी वस्तुओं के यथावस्थित सत्य स्वरूप को देख सगा और प्रत्येक अवसर पर आवश्यक एवं समयोचित कदम उठा सकेगा । श्रर्थात् इस समता योगनली द्वारा तू स्वयं ही सब कुछ निर्णय कर सकेगा । इसलिये अब तुझे अधिक उपदेश देने की आवश्यकता नहीं है ।
हे वत्स ! इस निर्वृत्ति नगरी में तो सर्वदा आनन्दोत्सव चलते ही रहते हैं, अतः यहाँ पहुंचकर ही तू अन्तरंग * राज्य प्राप्ति का वास्तविक फल और लाभ का भोक्ता बन सकेगा । उस समय तुझे किसी भी प्रकार की बाधा - पीड़ा नहीं रहेगी । सम्पूर्ण शत्रु-समूह के नाश से तू निर्भय हो जायगा । हे भाग्यशालिन् । वहाँ तू सर्वदा आनन्द की लहरों में मग्न रहेगा । तेरे साथ जो अन्तरंग राज्य के राजा हैं उन्हें भी समृद्धि प्राप्त होगी और तुझ में लय होकर वे भी तेरे साथ आनन्द का भोग करेंगे । [ ५६५-५६७ ]
वत्स ! तू यह भी लक्ष्य में रखना कि अन्तरंग राज्य में प्रवेश करते ही तू पहले तेरे शत्रुओं का नाश करने वाले पराक्रमी योद्धा वैराग्य को प्रमुख बना देना और मार्गों के जानकार अभ्यास को अपने साथ रखकर उसके मार्ग-दर्शन में ही आगे बढ़ना । हे महाभाग ! इन दोनों की सहायता से राज्य में प्रवेश करने के पश्चात् पद - पद पर तेरी समृद्धि में वृद्धि होगी । अधिक क्या कहूँ ? संक्षेप में तुझ से यही कहना है कि तू इस राज्य मार्ग का कभी त्याग मत करना, अपने अन्तरंग शत्रुओं का नाश करते रहना, बाह्य संपत्ति या श्राकर्षणों के प्रति आसक्त मत होना, चारित्र - धर्म आदि तेरे हितेच्छुओं का सम्यक् प्रकार से पालन-पोषण करना और मेरे उपदेश को बारम्बार स्मरण करते रहना । हे वत्स ! यदि तू इस प्रकार करेगा तो तेरा सब प्रकार से कल्याण होगा । वत्स ! अब तू जा और निर्मल राज्य कर । तुझे सिद्धि, लाभ और राज्यफल प्राप्त होंगे और मेरा परिश्रम / प्रयत्न भी सफल होगा । [ ५६८- ५७२]
" जैसी भगवान् की आज्ञा " कहते हुए उत्तम राजा ने प्रस्थान किया । उत्तम का उपदेशानुसार अनुष्ठान
महात्मा सिद्धान्त गुरु के उपदेश के अनुसार ही बुद्धिशाली उत्तम राजा ने अन्तरंग राज्य में प्रवेश किया और उनके मार्ग-दर्शनानुसार ही अपने सभी कर्त्तव्य पूर्ण किये । [ ५७३ - ५७४ ]
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