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________________ १६६ उपमिति भव-प्रपंच कथा है । यह मार्ग चारित्रधर्मराज की सेना को अत्यन्त प्रिय है । इस मार्ग को महामोह राजा की सेना स्पर्श भी नहीं कर सकती । इस मार्ग पर अनवरत चलकर तू निर्वृत्ति नगरी की ओर जाना । इस मार्ग पर तुझे पहले अध्यवसाय नामक विशाल सरोवर मिलेगा । इस सरोवर की विशेषता यह है कि जब यह गंदा होता है तब स्वाभाविक रूप से महामोह राजा की सेना का पोषण करता है और चारित्रधर्मराज की सेना को उत्पीड़ित करता है, किन्तु जब यह स्वच्छ होता है तब प्रसन्नतापूर्वक स्वाभाविक रूप से चारित्रधर्मराज के सैन्य को पुष्ट करता है और महामोह राजा के सैन्य को * दुर्बल बनाता है । यही कारण है कि महामोह की सेना अपने हित के लिये इसे दूषित करती रहती है और चारित्रधर्मराज की सेना अपने उपकारार्थ इसे स्वच्छ करती रहती है । तू इस अध्यवसाय महासरोवर को स्वच्छ करने के लिये मैत्री, मुदिता, करुणा, उपेक्षा महादेवियों को नियुक्त कर देना; क्योंकि ये चारों देवियां इस सरोवर को निर्मलत / स्वच्छतम बनाने में प्रत्यन्त चतुर हैं । इस सरोवर को स्वच्छ करने से चारित्रधर्मराज की सेना अधिक बलवान होगी, जिससे तेरे अधीनस्थ राजा भी पुष्ट होंगे और महामोह राजा की सेना बलहीन हो जायेगी, तब ही तू आगे प्रयाण कर सकेगा । आगे जाकर तुझे इसी सरोवर में से निकली हुई धारणा नामक महानदी मिलेगी । तब तू अपने श्रासन को स्थिर कर, हलन चलन को रोक कर, श्वासोच्छ् वास को बन्द कर, सकल इन्द्रियों के व्यापार को रोक कर, प्रति वेग से चलकर नदी में प्रवेश कर जाना । इस समय महामोह आदि भयंकर शत्रु नदी में संकल्प - विकल्प की उत्ताल तरंगे पैदा करेंगे, पर तू अत्यन्त सावधानी पूर्वक इन तरंगों को उठते ही शांत कर देना । जब तू धारणा नदी को पार कर आगे बढ़ेगा तब तुझे धर्म-ध्यान नामक दण्डोलक ( पगडण्डी ) मिलेगी । इस पगडण्डी से आगे बढ़ने पर तुझे सबीजयोग नामक बड़ा रास्ता मिलेगा । इस रास्ते पर चलते हुए तेरे महामोहादि समग्र शत्रुनों का प्रतिपल नाश होता जायगा और उनके निवास स्थान भी सब अस्त-व्यस्त होकर विनाश की अवस्था को प्राप्त होते जायेंगे । इस मार्ग पर चारित्रधर्मादि अनुकूल मित्र अधिक बलवान होंगे | तेरी सम्पूर्ण अन्तरंग राज्य-भूमि अधिकाधिक स्वच्छ और विशुद्ध होती जायेगी । पहले उसमें जो राजस् और तामस् वृत्तियां थीं, उनका अब नामो-निशान भी नहीं रहेगा । इस मार्ग से आगे बढ़ने पर एक ओर शुक्ल ध्यान नामक दण्डोलक आयेगा दण्डोलक से चलकर ग्रागे बढ़ने पर तुझे विशुद्ध केवलालोक की प्राप्ति होगी, जिससे तू सभी वस्तुनों और भावों को यथावस्थित शुद्ध आकार में देख सकेगा । यह दण्डोलक आगे जाकर निर्बीजयोग नामक बड़े मार्ग से मिल जायेगा । इस मार्ग पर चलते हुए भयंकर शत्रुनों का शमन करने के लिये तुझे केवली -समुद्घात नामक कठिन प्रयत्न करना पड़ेगा । ऐसा करके तू योग नामक तीन दुष्ट वैतालों का नाश कर सकेगा । * पृष्ठ ५६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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