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________________ १६२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा राजा की बहुत प्रशंसा हुई। लोग कहने लगे कि यह राजा सचमुच भाग्यवान और पुण्यवान है, इसको सत्य मार्ग प्राप्त हुआ है, यह धन्य है । [५३३-५३४] अधिक क्या ? जैनेन्द्र-शासन में प्रवृत्त जिन जीवों ने सत्य मार्ग प्राप्त किया है, जिनके मन में सच्ची शुद्ध श्रद्धा जाग्रत हुई है, जो जीव, अजीव आदि तत्त्वों के जानकार हैं, जो अपनी शक्ति के अनुसार पाप से पीछे हटे हुए हैं, जो अपनी विशुद्ध लेश्या वैचारिक प्रवृत्ति से संसार के सभी प्राणियों को आह्लादित करते हैं, ऐसे प्रारणी जिस प्रकार का प्राचरण करते हैं ठीक वैसा ही आचरण मध्यम राजा ने अपने राज्य को भोगते समय किया। तत्त्व को समझ कर परलोक और मोक्ष के लिये प्राणी जिस प्रकार का पुरुषार्थ करता है उसी प्रकार का उद्यम करने वाला मध्यम राजा भी था। [५३५-५३८] मध्यम राजा का पिता सार्वभौम नरपति कर्मपरिणाम महाराजा * अपने पुत्र की इस प्रवृत्ति से प्रसन्न हुआ और उसका राज्य-काल पूरा होने पर उसे असंख्य सुखों से भरपूर विबुधालय (देवलोक) में भेज दिया। [५३६-५४०] १५. उत्तम-राज्य वितर्क अप्रबुद्ध से कह रहा है-निकृष्ट, अधम, विमध्यम और मध्यम इन चार प्रकार के राजाओं का भिन्न-भिन्न चरित्र और राजतन्त्र का अवलोकन करने के पश्चात् 'पांचवां उत्तम क्या करेगा और किस प्रकार राज्य का पालन करेगा?' इस सम्बन्ध में मुझे जानने की उत्सुकता जाग्रत हुई। गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी उत्तम राजा के राज्यारंभ की घोषणा देश के सभी नगरों और ग्रामों में हुई। घोषणा सुनकर अन्तरंग राज्य के अधिपति चारित्रधर्मराज और महामोहराज की सभाओं में भी इस नये राजा के विषय में ऊहा-पोह एवं विचार-विमर्श हुआ । [५४१-५४३] सबोध मंत्री ने सेना में शांति तथा धैर्य बनाये रखने के लिए चारित्रधर्मराज के समक्ष उत्तम राजा के स्वरूप और गुणों का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा भाइयों ! इस नये राजा से आप लेशमात्र भी न घबरायें । यह राजा बहुत अच्छा, हमारे प्रति प्रेम रखने वाला और हमारे आनन्द में विशिष्ट वृद्धि करने * पृष्ठ ५६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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