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प्रस्ताव ६ : विमध्यम-राज्य
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में मोक्ष को ही सच्चा परमार्थ स्वरूप मानता है । वह यह भी जानता है कि मोक्ष रूपी साध्य को प्राप्त करने का वास्तविक साधन धर्म ही है, अतः वह अर्थ और काम में अधिक आसक्त नहीं होता । यद्यपि वह धन और काम भोगों के दोषों को भली भांति जानता है, तथापि स्वयं में अत्यन्त विशाल पराक्रम के अभाव में वह उसको परमार्थ से बन्धन/दोष स्वरूप ही समझता है ! फिर भी इन बन्धनों को तोड़ने में अभी वह अपने आपको असमर्थ पाता है। उसका चिन्तन सदा मोक्ष लक्ष्य की ओर ही रहता है, अर्थात वस्तु स्वरूप को बराबर समझता है ।* फिर भी यह नरपति आवश्यक सामर्थ्य के अभाव में बन्धु, पुत्र, कलत्रादि इन भाव-बन्धनों को तोड़ने में अक्षम है । [५१७-५२२]
वितर्क कहता है कि विषयाभिलाष मन्त्री ने महामोहराज आदि के सन्मुख मध्यम के स्वरूप गुणों का चित्रण किया वैसा ही मध्यम का स्वरूप-वर्णन मैंने जनता के मुख से भी सुना।
___ अप्रबद्ध-वितर्क ! तुमने मध्यम के सम्बन्ध में लोगों के मुख से और क्याक्या सुना?
वितर्क- देव ! सुनिये । सिद्धान्त गुरु ने जो बातें आपको पहले बतलाई थीं उन्हीं सिद्धान्त गुरु से इस मध्यम राजा की भी पहचान थी । सिद्धान्त गुरु ने एक बार मध्यम राजा को उद्देश्यपूर्वक समझा दिया था जिससे वह अपने
आत्मिक अन्तरंग राज्य को भी थोड़ा बहुत जान गया था। उनके उपदेश से वह अपनी ऋद्धि-समृद्धि और वास्तविक स्वरूप को तथा चारित्रधर्मराज के योद्धाओं को भी पहचान गया था। सिद्धान्त के वचनों से वह यह भी जान गया था कि महामोह आदि शत्रु कितने प्रबल तस्कर हैं। फलस्वरूप मध्यम राजा ने अपने वीर्य (बल) को थोड़ा-थोड़ा प्रकट कर अन्तरंग राज्य की आधी भूमि को अपने अधीन कर लिया। मध्यम राजा के सहायक चारित्रधर्मराज और उसके योद्धा भी इससे प्रसन्न हुए और मोह राजा आदि चोर-लुटेरे घबराये । महामोह आदि तस्कर भी मध्यम राजा की शक्ति को जान गये, अतः अब उन्होंने भी उसके राज्य को अधिकार में करने के विचार का त्याग कर दिया और राजा के अनुचर जैसे बनकर उससे डरते हुए, भय खाते हुए उसके आस-पास ही मंडराने लगे। चारित्रधर्मराज आदि राजा, सेना एवं बान्धवजन भी अपने स्वामी की इतनी सामर्थ्य को देखकर मन में किंचित् प्रसन्न हुए और दृष्टिदेवी जो पिछले राजाओं को वश करने में समर्थ हुई थी वह भी मध्यम राजा के मार्ग में अत्यन्त बाधक नहीं बन सकी, अर्थात् उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी। [५२३-५३२]
इस प्रकार मध्यम राजा ने अपने मण्डल को थोड़ा जीत लिया था और धीरेधीरे अपने राज्य का विस्तार करने की प्रतीक्षा करने लगा। बाह्य प्रदेश में मध्यम
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