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प्रस्ताव ६ : सुख-दुःख का कारण : अन्तरंग राज्य
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में विभक्त हो ऐसा प्रतीत होता है । अत: मैं इसका स्वरूप जानना चाहता हूँ, कृपा कर बतलावें ।
सिद्धान्त - भद्र ! सुनो - महाराजा संसारी जीव ने समस्त कार्यों में पूर्ववरिणत कर्मपरिणाम राजा को प्रमाणभूत माना है । कर्मपरिणाम राजा इच्छानुसार अपने पुत्रों को भिन्न-भिन्न रूप में अपना परिपूर्ण राज्य बाँटकर उसका अधिपति बना देता है । इस प्रकार अनन्त राजानों के भेद से यह अन्तरंग राज्य भी अनन्तरूप है । प्रत्येक जीव अपने राज्य का राजा होता है और जीव अनन्त हैं इसलिये पात्र - विशेष के कारण राज्य भी अनन्त प्रकार के हैं । [ ३७३-३७६]*
भद्र ! यही कारण है कि कर्मपरिणाम के अनन्त राजपुत्रों में से किसी को यह सुख का कारण होता है तो किसी को दुःख का कारण । सुख-दुःख भी अनेक प्रकार के होने से यह अंतरंग राज्य भी अनेक प्रकार का है ।
अप्रबुद्ध - भदन्त ! कर्मपरिणाम राजा के पुत्र जब राज्य कर रहे थे, तब प्रत्येक की क्या स्थिति रही ? यह जानना चाहता हूँ ।
कर्मपरिणाम के छः पुत्र
सिद्धान्त -- भद्र ! मैंने अभी बतलाया था कि कर्मपरिणाम राजा के अनन्त पुत्र हैं । यदि एक-एक के स्वरूप का वर्णन करने लगू तो कभी इस कथा का अन्त ही नहीं सकता । तथापि तुझे सुनने जानने का कौतूहल है अतएव सब पुत्रों की स्थिति का एक सर्वग्राही रूप तुझे बतलाता हूँ ।
अप्रबुद्ध - महती कृपा होगी, बतलाइये ।
सिद्धान्त - इस कर्मपरिणाम के पुत्र छः प्रकार के हैं, १. निकृष्ट, २. अधम, ३. विमध्यम, ४, मध्यम, ५. उत्तम और ६. वरिष्ठ । कर्मपरिणाम महाराजा से प्रार्थना कर मैं एक ऐसी योजना बनाता हूँ कि वे प्रत्येक प्रकार के पुत्रों को एक-एक वर्ष का राज्य प्रदान करें। फिर तुम अपने अन्तरंग कर्मचारी वितर्क को यह देखने के लिये भेजना कि ये छहों पुत्र अपने राज्य का पालन / उपभोग किस प्राकर करते हैं ? वितर्क प्रदत्त विवरण के आधार पर तेरी समझ में आ जायगा कि कर्मपरिणाम का विशेष राज्य किस प्रकार अनेक रूप और भिन्न-भिन्न है ।
अप्रबुद्ध के स्वीकार करने पर सिद्धान्त आचार्य ने पूर्वोक्त निर्धारित योजनानुसार कर्मपरिणाम राजा के छः प्रकार के पुत्रों को अलग-अलग एक-एक वर्ष का राज्य दिलवाया और अप्रबुद्ध ने अपने कर्मचारी वितर्क को उनके राज्य-संचालन का सूक्ष्मता से अध्ययन करने भेज दिया ।
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