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प्रस्ताव ६ : सुख-दुःख का कारण : अन्तरंग राज्य
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ये दोनों नायक राज्य-ऋद्धि से पूर्ण, अत्यन्त अभिमानी, वीर और अपनी स्वतन्त्र चतुरंगी सेना से युक्त हैं। इनके अधीनस्थ करोड़ों योद्धा हैं। ये दोनों इतने घमंडी हैं कि अपने आपको ही राजा समझते हैं। ये समझते हैं कि संसारी जीव कौन होता है ? चारित्रधर्मराज की क्या हस्ती है ? यह चित्तवृत्ति अटवी और यह राज्य तो उनका और उनके बाप का है। अन्य किसी का शक्ति-सामर्थ्य नहीं कि वह इस राज्योपभोग में उनका सामना कर सके। इन सब चोर-लुटेरों ने कर्मपरिणाम को अपना राजा बना लिया है और अपने राज्य का विस्तार कर रहे हैं ।
[३६५-३६७] __इन्होंने भीलपल्ली जैसे राजसचित्त, तामसचित्त और रौद्रचित्त आदि अनेक नगर बसा रखे हैं और महामोह को उसका राजा बना रखा है । अपनी चतुरंगी सेना भी महामोह राजा को सौंप रखी है और अपनी इच्छानुसार राज्य नीति का निर्धारण कर रखा है। राज्यधुरा का समस्त भार महामोह को सौंप रखा है। स्वयं कर्मपरिणाम महाराजा और कालपरिणति रानी तो मात्र मनुजगति नगरी में बैठे-बैठे संसार नाटक को देखते रहते हैं।
कर्मपरिणाम राजा, संसारी जीव महाराजा के शक्ति-सामर्थ्य को जानता है, चारित्रधर्मराज के बल को भी पहचानता है, महामंत्री सद्बोध की तन्त्रशक्ति और सेनापति सम्यग्दर्शन के सैन्यबल को भी लक्ष्य में रखता है और संतोष तन्त्रपाल का चातुर्य और शुभाशय आदि योद्धात्रों के युद्धोत्साह की प्रबलता को भी जानता है । अतः वह संसारी जीव के प्रति अत्यन्त उपेक्षा-भाव नहीं रखता, किन्तु उसका भविष्य देखता रहता है, चारित्रधर्मराज आदि का अनुकरण करता है, उनके साथ एकात्मकता प्रकट करता है, प्रेम बढ़ाता है और उनके लिए सुयोग्य प्रयोजनों की योजना करता है। इसीलिये चारित्रधर्मराज और उनके अधीनस्थ सभी राज्य कर्मचारी भी कर्मपरिणाम राजा को मध्यस्थ मानते हैं। उनकी तटस्थता के कारण ही उन्हें अपना स्वामी मानते हैं और उनके साथ सरल व्यवहार करते हैं। इसीलिए संसारी जीव के महाराज्य में कर्मपरिणाम राजा को बड़ा और परामर्श लेने योग्य माना जाता है। यही कारण है कि चारित्रधर्मराज भी उन्हें सन्मान देते हैं।
चोरों का सरदार महामोह अपने बाहुबल के अभिमान में संसारी जीव या चारित्रधर्मराज और उनके सैन्यबल को तृण जैसा भी नहीं समझता। वह तो अपने प्रापको ही सर्वोपरि मानता है । संसारी जीव महाराजा जब तक अपने आत्मीय स्वराज्य को नहीं पहचानता और यह नहीं जानता कि उसके पास भी महाबलवान चतुरंगी सेना है, अनन्त धन भण्डार और भूमि है, स्वयं में परमेश्वरत्व की सत्ता है, तब तक उस अवसर का लाभ उठाकर चोरों का सरदार महामोह सदल-बल संसारी जीव की अधीनस्थ भूमि पर आक्रमण करता है, घेरा डालता है, उसके सारे नगर,
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