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________________ उपमिति भव-प्रपंच कथा सिद्धान्त - सामान्य तौर पर यह एकरूप है, एक समान है, किन्तु विशेष प्रकार से देखें तो अनेक रूप वाला और भिन्न-भिन्न है । १७६ अप्रबुद्ध-- यदि ऐसा ही है तब इस सामान्य राज्य का राजा कौन है ? उसका कोष और सेना कितनी है, उसके अधिकार में कौन सी भूमि और कौन-कौन से देश हैं और उसके पास अन्य किस प्रकार की राज्य सामग्री है ? यह मैं सुनना चाहता हूँ, जानना चाहता हूँ । सामान्य राज्य वर्णन सिद्धान्त -- भद्र ! सुनो-- सामान्य राज्य का राजा संसारी जीव है । इस समस्त राज्य का राज्य भार इसी पर है तथा सब का आधारभूत भी यही है । समता ज्ञान, ध्यान, वीर्य आदि अनेक स्वाभाविक रत्नों से इस महाराज्य का भण्डार भरा है । इस विशाल राज्य में त्रिभुवन को प्रानन्ददायी और क्षीरसमुद्र के सदृश अत्यन्त निर्मल चतुरंगी सेना है । इसकी चतुरंगी महा सेना में गम्भीरता, उदारता, शूरवीरता आदि बड़े-बड़े रथ हैं । यशस्विता, सौष्ठवता, सज्जनता, प्रेम आदि बड़े-बड़े हाथी हैं । बुद्धिचातुर्य, वाक्पटुता, निपुणता श्रादि घोड़े हैं । अचपलता, प्रसन्नता, प्रशस्तता, मनस्विता और दाक्षिण्य आदि पैदल सैनिक हैं । संसारी जीव महाराजा के हितकारी चतुर्मुखधारी चारित्रधर्मराज नामक प्रतिनायक भी हैं । इस प्रतिनायक के सम्यग्दर्शन सेनापति और सद्द्बोध मन्त्री हैं । इस चारित्रधर्मराज के यतिधर्म और गृहस्थधर्म नामक दो पुत्र भी हैं । इसके संतोष तन्त्रपाल (प्रधान) है और शुभाशय आदि बहुत से योद्धा हैं । संसारी जीव राजा ने अपने सुराज्य में ऐसी चतुरंगी सेना बना रखी हैं । इस विशाल चतुरंगी सेना का वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है ? यह महासेना अनन्त गुरण - समूह से परिपूर्ण है । राजा स्वयं जब निर्मल होता है तब उसे देख / समझ सकता है । [३५६-३६३] इस महाराज्य की भूमि चित्तवृत्ति नामक महा टवी में स्थापित की गई है जो चित्तवृत्ति के नाम से विख्यात है और सब का आधार इसी पर है । [३६४] इस चित्तवृति नामक ग्रटवी में सात्त्विक मानसपुर, जैनपुर, विमलमानस, शुभ्रचित्त आदि अनेक छोटे-मोटे नगर हैं और इन नगरों से जुड़े हुए अनेक ग्राम तथा खानें हैं । इस महाराज्य की भूमि में धातिकर्म नाम के अनेक * डाकू हैं, इन्द्रिय नामक चोर हैं, कषाय नामक जल्लाद घूमते हैं और नौ-कषाय नामक लुटेरे घूमतेफिरते हैं । इसमें परीषह नामक उपद्रव - कर्त्ता चारों तरफ भ्रमरण करते रहते हैं, उपसर्ग नामक महा भयंकर सर्प और प्रमाद नामक लम्पट रहते हैं । इन सब के दो नायक / नेता हैं - एक कर्मपरिणाम और दूसरा महामोह, ये दोनों भाई हैं । * पृष्ठ ५८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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