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________________ प्रस्ताव ६ : मैथुन और यौवन के साथ मैत्री १५५ फिर बहुत आडम्बरपूर्वक देव-गुरु की पूजा की गई। सामन्तों को सन्मानित किया गया, परिजन, प्रेमीवर्ग को पहरावणी (वस्त्राभूषण) दी गयी, राज्य कर्मचारियों को प्रसन्न किया गया, प्रधान वर्ग अथवा प्रजाजनों को सन्तुष्ट किया गया और ऐसे अन्य सभी करणीय कृत्य किये गये। इस प्रकार विवाह का आनन्द चारों ओर प्रसरित हो गया। ६. मैथुन और यौवन के साथ मैत्री नीलकण्ठ राजा को मयूरमंजरी अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी थी। इस सर्वांगसुन्दरी प्रेमनिपुणा मयूरमंजरी को अपनी पत्नी के रूप में प्राप्त कर हरिकुमार अपनी मित्र-मण्डली के साथ अपना समय आनन्दपूर्वक व्यतीत करने लगा। उस समय रत्नद्वीप में उसकी बहुत प्रसिद्धि हुई। नीलकण्ठ के पुत्र नहीं था अतः पूरा परिवार और सम्बन्धीजन कुमार पर मुग्ध थे। कुमार के अनेक गुण उन्हें प्रानन्दित करते थे, अतः सभी उसके प्रति विशेष आकर्षित होते गये । यहाँ तक कि समग्र अन्तःपुर, नगर निवासी और राज्यमण्डल भी कुमार पर मुग्ध होने लगा, उसके नाम से संतोष प्राप्त करने लगे और उसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर हो गये। [१७६-१७६] हे अगहीतसंकेता ! इधर कुमार मुझ पर इतना अधिक स्नेह रखता था कि में एक क्षण भर भी उसे छोड़ नहीं सकता था और उसे भी मेरा पलभर का वियोग भी सहन नहीं होता था। मुझ पर सद्भावपूर्वक सच्चा स्नेह रखने वाला मेरा अन्तरंग मित्र भाग्यशाली पुण्योदय मेरे साथ था, उसी के प्रताप से मेरा कुमार के साथ इतना प्रगाढ स्नेह-बन्धन हो गया था। [१८०-१८१] इसी पुण्योदय के प्रताप से कुमार के साथ रहकर मुझे अनुपम विषय सुख भोगने को मिल रहे थे, देवताओं को भी दुर्लभ विलास के साधन प्राप्त हो रहे थे, उत्तमोत्तम पुरुष भी जिसकी कामना करें ऐसी सत्संगति प्राप्त हो रही थी और मेरे ज्ञान एवं बुद्धि में वृद्धि हो रही थी। लोगों में मेरे यश का डंका बज रहा था और मेरे गौरव में सचमुच वृद्धि हो रही थी। धनशेखर के संकल्प-विकल्प हे भद्रे ! मुझे सब प्रकार की अनुकूलताएं होते हुए भी सागर (लोभ) मित्र की प्रेरणा से मेरे मन में अनेक नये-नये संकल्प-विकल्प होते रहते थे। * पृष्ठ ५७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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