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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जैसे अपने प्रिय के वियोग में प्रिया उसे बार-बार स्मरण कर अधिकाधिक शोक करती हुई सूख जाती है वैसे ही यह राजहंसिनी अपने हृदय में बसे हुए प्रिय को एक बार देखने के पश्चात् उसके वियोग में सूख कर कांटा हो रही है। हे मानवों ! अन्य करोड़ों भवों में जिसके फल को सहन करना पड़े ऐसे अनन्त पाप करने वाले मनुष्य को ही ऐसी दु:खद अवस्था प्राप्त होती है।
ये दोनों चित्र देखकर और उनके नीचे लिखे छन्दों को पढ़कर हरिकुमार के मन में यह बात घर कर गई कि, अहो ! राजकुमारी बहुत हो कुशल और रसिक जान पड़ती है । अहो ! इसके चातुर्य से लगता है कि इसमें रहस्य के सार को ग्रहण करने की अद्भुत शक्ति है । अहो ! अपना सद्भाव अन्त:करण-पूर्वक अर्पण करने की शुद्ध बुद्धि भी उसमें स्पष्ट दिखाई देती है। सच ही ऐसा लग रहा है कि उसके मन में मेरे प्रति दृढ़ प्रेम है। इसका कारण यह है कि इसने प्रथम चित्र में विद्याधरदम्पत्ति को चित्रित कर उसने अपने अन्तःकरण की गहनतम अभिलाषा को अभिव्यक्त कर दिया है और दूसरे चित्र में विरही राजहंसिनी को चित्रित कर उसके माध्यम से उसने यह प्रकट कर दिया है कि अभिलषित वस्तु के न मिलने पर उसकी दशा कैसी दीन हो सकती है । इसने चित्रों में ही उक्त भाव इतनी सुन्दरता से अंकित कर दिये हैं कि इससे उसके मनोभाव स्पष्टतः व्यक्त हो जाते हैं। फिर चित्र के नीचे छन्द लिख कर तो उसने उन भावार्थों को और भी अधिक स्पष्ट कर दिया है।
तत्पश्चात् कुमार ने अपने पास बैठे हुए मन्मथ आदि मित्रों को चित्र दिखाये। मित्र तो उसके मन की बात पहले ही जानते थे, अतः वे एकदम बोल पड़े--अरे कुमार ! मित्र !! उठ, उठ !! शीघ्र जाकर उस बेचारी राजहंसिनी को धैर्य बंधा, उसमें शान्ति प्राप्लावित कर और उसे उसकी धारणा में स्थिर कर। किसी मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति की उपेक्षा करना ठीक नहीं है।
___उत्तर में कुमार ने मात्र इतना ही कहा- अच्छा, ऐसी बात है तो चलो ऐसा ही करें। परिणय
उसके पश्चात् सभी राजभवन में गये। नीलकण्ठ महाराज ने बहुत मानपूर्वक अपनी प्रिय पुत्री मयूरमंजरी हरिकुमार को अर्पित की। उसके पश्चात् शुभ लग्न पर हरिकुमार और मयूरमंजरी का लग्न महोत्सव बहुत आडम्बरपूर्वक मनाया गया।
इस उत्सव के अवसर पर अनेक मनुष्य मधुर रसपान से मस्त होकर लस्तपस्त हो गये। अनेक लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार दान में धन दिया गया । यह लग्न इतना सुन्दर हुआ कि देवता भी इससे अत्यन्त विस्मय और आनन्द को प्राप्त हुए । लोग उस समय नाचने और खाने-पीने में अत्यन्त मग्न हो गये ।
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