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________________ १४० उपमिति-भव-प्रपंच कथा एक ही श्लोक में ऐसे सात प्रश्नों को सुनकर कुमार बोला--भाई ! तुम्हारे प्रश्न तो व्यस्त-समस्त हैं, अर्थात् एक-दूसरे के विपरीत अटपटे और बहुल समास युक्त हैं। अतः दुबारा अधिक स्पष्ट रूप से बोलो जिससे कि प्रत्येक प्रश्न अच्छी प्रकार से ध्यान में आ सके । कुमार की इस मांग पर विलास ने श्लोक को धीरे-धीरे स्पष्ट रूप से दुहरा दिया। सोचकर हरिकुमार ने हंसते हुए उत्तर दिया-सुन भाई ! तेरे प्रश्नों का उत्तर है "अकुशलभावनाभावितमानसे" [उपरोक्त श्लोक में सात प्रश्न एक साथ पूछे गये हैं, जिनका उत्तर उपरोक्त एक ही शब्द में किस प्रकार दिया गया है, इसके कला-कौशल का नमूना भी देखिये : १. किस प्रकार के राज्य का अन्त में नाश होता है ? उत्तर में से चार अक्षर लीजिये 'अकुशल' अप्रवीण । अर्थात् राज्यनीति को न समझने वाले राज्य का अन्त में नाश होता है। २. अग्नि में कौन जलते हैं ? पहले के दो अक्षर छोड़कर उत्तर में तीन आगे वाले अक्षर लीजिये उत्तर आयेगा 'शलभा' याने पतंगे अग्नि में जलते हैं । ३. ज्ञातव्य को जाग्रत करने वाला उद्यान कौनसा है ? उत्तर में पहले के चार अक्षर छोड़कर आगे के तीन अक्षर लीजिये, उत्तर आयेगा 'भावना' । अर्थात् भावना रूपी उद्यान से जानने योग्य को जानने की इच्छा जाग्रत होती है। ४. अपने स्थान से भ्रष्ट न हो और जो अल्प समय में पूर्ण दशा को प्राप्त हो, ऐसा कौन है ? इसके उत्तर में पहले के छः अक्षर को छोड़कर आगे के तीन अक्षर लीजिये, उत्तर पायगा-'नाभावि' । अर्थात् न अभावि जो अभव्य न हो याने जो भव्य हो । भव्य जीव अपने स्थान से च्युत नहीं होते और समय बीतने पर अन्त में मोक्ष में जाते हैं, परिपूर्ण दशा को प्राप्त होते हैं । ५. जिनेश्वर कैसे होते हैं ? उत्तर में पहले के आठ अक्षर छोड़कर आगे के तीन अक्षर लीजिये, उत्तर पायेगा 'वितमा' याने विगतं तमः येषां ते जिनका अज्ञान रूपी अन्धकार सम्पूर्ण रूप से नष्ट हो गया है, ऐसे केवलज्ञानी जिनेश्वर होते हैं। ६. गन्ध किसको प्रिय है ? उत्तर है 'मानस' । सुगन्ध मन को प्रिय लगती है। ७. किस प्रकार के मनुष्य के मन में जिनेश्वर भगवान् पर भक्ति जागत नहीं होती ? उत्तर में पूरा ही पद ले लीजिये 'अकुशलभावनाभावितमानसे' जो अच्छी भावना नहीं रखते, उनकी जिनेश्वर पर भक्ति जागृत नहीं होती। हरिकुमार के उत्तर को सुनकर विभ्रम बहुत हँसा । जब हरिकुमार ने पूछा कि, भाई क्यों हँस रहे हो ? तब उसने कहा—कुमार। आपने विलास को प्रश्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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