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प्रस्ताव ६ : हरिकुमार की विनोद गोष्ठी
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पद्मकेसर ऐसा संक्षिप्त किन्तु सही उत्तर सुनकर अतिशय विस्मित हुआ। फिर उसने दूसरा प्रश्न किया
कस्या बिभ्यद्भीरुन भवति संग्रामलम्पटमनस्कः ।
वाताकम्पित वृक्षा निदाघकाले च कीदृक्षाः ।।१२६।। भावार्थ --युद्ध करने में जिसका मन लगा हो वह किससे अधिक भयभीत नहीं होता ? ग्रीष्म में पवन से कांप रहे वृक्ष कैसे लगते हैं ?
कुमार ने पद्मकेसर को प्रश्न पुनः बोलने के लिये कहा। श्लोक दुबारा सुनने पर थोड़े से विचार के पश्चात् कुमार ने उत्तर दिया-"दलनाया: ।"
पद्मकेसर ने उत्तर स्वीकार किया।
[यहाँ प्रथम प्रश्न यह था कि जिस योद्धा का मन सर्वदा युद्ध में रमा रहता है, वह किससे अधिक भयभीत नहीं होता ? उत्तर में कहा गया है कि ऐसा योद्धा 'दलना' अर्थात् सेना से नहीं डरता। जिसको युद्ध करने जाना है और जिस योद्धा का मन सदा युद्ध में ही लगा रहता है, वह बड़ी से बड़ी सेना को देखकर भी, कभी अधिक तो क्या तनिक भी भयभीत नहीं होता। दूसरा प्रश्न है ग्रीष्म में पवन से कांप रहे वृक्ष कैसे लगते हैं ? उत्तर वही है कि वृक्ष पत्ररहित होने से ठंठ जैसे लगते हैं। ग्रीष्म में वृक्ष के पत्ते सूख कर गिर जाते हैं और फिर नये पत्ते बसंत के आगमन पर ही आते हैं अतः वह 'दल-न-प्रायः दलनायाः' अर्थात् जिसमें पत्ते (दल) नहीं आते हों ऐसा वृक्ष ठूठ ही लगता है। इस प्रकार पूर्ण श्लोक के दो प्रश्नों का संक्षिप्त और सही उत्तर यहाँ भी केवल चार अक्षरों में दिया गया है ।]
इसके पश्चात् अर्हद् दर्शन (जैनमत) की ओर अभिरुचि वाले विलास नामक मित्र ने कहा-- कुमार ! मैंने भी एक प्रश्न मन में सोच रखा है। कुमार के यह कहने पर कि प्रश्न बोलो, उसने निम्न श्लोक बोला
कीग्राजकूलं विषीदति ? विभो ! नश्यन्ति के पावके ? बौध्यं काननमच्युताश्च बहवः काले भविष्यन्त्यलम् ? । कीहक्षाश्च जिनेश्वरा? वद विभौ ! कस्यै तथा रोचते ?
गन्धः कीशि मानवे जिनवरे भक्तिर्न सम्पद्यते ? ।।१२७।।
भावार्थ--किस प्रकार का राजकूल (राज्य) अन्त में विषाद (नष्ट) को प्राप्त होता है ? अग्नि में कौन नष्ट होता है ? ज्ञातव्य को जाग्रत करने वाला उद्यान कौन-सा है ? ऐसा कौन है जो अपने स्थान से भ्रष्ट न हो और वह अल्प समय में परिपूर्ण दशा को प्राप्त हो ? जिनेश्वर कैसे होते हैं ? हे प्रभो ! कहो, गन्ध किस को प्रिय लगती है और किस प्रकार के मनुष्य के मन में जिनेश्वर भगवान पर भक्ति जागत नहीं होती ?
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