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उपमिति भव-प्रपंच कथा
पर मिल गया । फिर धरण सार्थवाह से आज्ञा लेकर मैं उसके साथ यहाँ रत्नद्वीप पहुँच गई । इस बालक पर मेरा अत्यधिक स्नेह होने से मेरे स्तनों में दूध भर आया और उसे पी कर ही यह नवजात बालक यात्रा में जीवित रह सका । रत्नद्वीप पहुँच कर मैंने बालक को महाराजा नीलकण्ठ को दिखाया और कमलसुन्दरी सम्बन्धी सब घटना उन्हें कह सुनाई । नीलकण्ठ राजा को बहिन की मृत्यु पर शोक हुआ, पर साथ ही भारगजे के सकुशल पहुँचने की प्रसन्नता भी हुई। उन्होंने बालक का नाम हरि रखा । वह भाणेज अनुक्रम से बड़ा होने लगा और वह राजा नीलकण्ठ को अपने प्राण से भी अधिक प्यारा लगने लगा । [ १०२] फिर उसे कलाविज्ञान की शिक्षा दिलवाई गई । श्रभी वह कुमार युवा हो गया है और देवकुमार जैसे रूप और आकृति को धारण कर अपने मामा के राज्य में ग्रानन्द कर रहा है । मैंने उसे सब वास्तविकता बतलादी है । अभी-अभी उसे समाचार प्राप्त हुए हैं कि आप भी श्रानन्दपुर के रहने वाले हैं और वहीं से यहाँ आये हैं । आप कुमार के देश के हैं, इसलिये कुमार प्रापको अपने देश का जानकर आपसे मिलना चाहते हैं । अतः पुत्र ! आप उनके पास चलने की कृपा करें ।
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हरिकुमार से परिचय
हरिकुमार की माता की दासी और कुमार की धात्री ( धायमाता) उस वसुमती वृद्धा के वचन सुनकर मैंने उसके साथ जाना स्वीकार किया और तत्काल ही मैं उसके साथ हरिकुमार के पास गया । वहाँ जाकर मैंने देखा कि हरिकुमार अपने मित्रों के मध्य बैठा है । मैंने जाकर हरिकुमार को नमस्कार किया । धात्री वसुमती ( वृद्धा ) ने कुमार से मेरा परिचय करवाया । मुझ से मिलकर कुमार बहुत प्रसन्न हुआ । प्रेम से अपने नेत्र अर्धनिमीलित करते हुए उत्साहपूर्वक मुझे हृदय से लगाकर उसने मुझे अपने प्राधे आसन पर बिठाया । फिर कुमार बोलाभद्र ! मुझे पहिले ही माजी ( वसुमती धाय) ने बताया था कि हरिशेखर मेरे पिताजी के प्रिय मित्र हैं और लोगों के कथनानुसार मुझे मालूम हुआ है कि आप हरिशेखर के पुत्र हैं, अतः भाई ! आप तो मेरे सच्चे भाई ही हैं । आप तो मेरे शरीर और प्राण ही हैं । आप यहाँ आये यह बहुत ही अच्छा हुआ । [ १० [ १०३-१०५ ]
राजकुमार हरि से इतना अधिक प्रादर पाकर मैं पुलकित हो गया । फिर मैंने कहा- देव ! माजी ने मुझे सब घटना बतला दी है । इस सेवक का आप इतना अधिक आदर सत्कार करें, यह किसी प्रकार उचित नहीं है । जैसे मेरे पिताजी श्रापके पिता श्री केसरी महाराज के अनुजीवी (सेवक ) हैं, वैसे ही मैं भी प्रापका सेवक आपकी सेवा में उपस्थित हूँ, इस विषय में आप तनिक भी संदेह न करें । मेरे उत्तर को सुनकर कुमार अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने मित्रों से मेरा परिचय करवा कर मित्रों के साथ प्रानन्दोत्सव मनाने लगा । मित्र के मिलाप को प्रति उज्ज्वल प्रसंग मानकर कुमार मेरे साथ मित्र जैसा व्यवहार करने लगा और सम्बन्ध भी
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