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प्रस्ताव ५ : घ्राण परिचय : भुजंगता के खेल
मन्द - हे कमलमुखी सुन्दरि ! मित्र घ्राण का पोषण कैसे करूं ? यह तो बता।
भुजंगता-नाथ ! आपका यह मित्र सुगन्ध का लोभी है, अतः इसका पोषण सुगन्धित द्रव्यों से करें । चन्दन, अगरु, कपूर, कस्तूरी, केसर आदि के चूर्ण का विलेपन इसे अत्यधिक प्रिय है। इलायची, लोंग, कपूर आदि अन्य सुगन्धित फलों और पदार्थों से बना ताम्बूल (पान) यह बड़े प्रेम से खाता है । मघमघायमान करते सुगन्धित धूप, गन्ध गुटिकायें, अनेक प्रकार के सुगन्धित पुष्प आदि अन्य सभी सुगन्धित पदार्थ इसे अति प्रिय हैं, लेकिन दुर्गन्ध इसे तनिक भी प्रीतिकर नहीं है, अतः यदि आप इसका सुख चाहते हों तो दुर्गन्ध से इसे सदा दूर रखें। इस प्रकार प्राप अपने मित्र घ्राण का पोषण करें। यह मित्र आपको दुःखनाशक और सुखकारक होगा। हे देव ! यदि आप इस पद्धति से घ्राण का पालन-पोषण करेंगे तब इससे प्रापको जो सुख प्राप्त होगा उसका वर्णन करना भी अशक्य है ।
___ मन्द-हे विशालनेत्रि ! तुमने बहुत अच्छी बात कही। हे सुभ्र ! जैसा तुमने कहा, वैसा ही मैं करूँगा । अब तुम आकुलता को छोड़कर स्वस्थ हो जाओ।
यह सुनकर बालिका की आँखें हर्ष से विकसित हो गईं। 'आपकी बड़ी कृपा' कहती हुई वह भुजंगता फिर मन्द के पैरों पर गिर पड़ी। [४११-४२५] बुध को कर्त्तव्यशीलता
बुध कुमार तो निर्जनवन में स्थित मुनि के समान मौन धारण कर भुजंगता का कृत्रिम प्रेम-प्रदर्शन और वाचालता का खेल देखता रहा । बालिका भूजंगता भी समझ गई कि यह कोई (पहुँचा हुआ व्यक्ति है,) शठ है, मेरे चक्कर में आने वाला नहीं है। अत: वह मुह से तो कुछ भी न बोली किन्तु बुध की ओर तिरस्कृत दृष्टि फेंक कर मन ही मन कुछ बड़बड़ाने लगी। उसके अस्पष्ट शब्दों में छुपी हुई विजय की दुष्ट वासना को देख बुध ने मन में विचार/निश्चय किया कि, अरे ! यह पर्वत और महागुफा तो मेरे क्षेत्र (शरीर) में ही है जिसमें घ्राण बैठा है, अतः मुझे उसका पोषण तो करना ही है। किन्तु, यह दुष्ट बालिका जैसा कह रही है तदनुसार सुख की कामना से इसका पोषण करना मेरा कर्तव्य नहीं है। अतः जब तक मैं इस क्षेत्र (शरीर) से मुक्त नहीं हो जाता तब तक लोक-यात्रा के अनुरोध से, विशुद्ध मार्ग से, बिना आसक्त हए मैं इसका पोषण करूंगा। ऐसा सोचकर बुध ने घ्राण का पोषण कर्त्तव्य रूप में करते हुए भी किसी प्रकार के दोषों को नहीं अपनाया और * उत्तम सुख भी प्राप्त करता रहा। [४२६-४३१]
___इधर मन्द कुमार दुष्टा भुजंगता के वशीभूत होकर घ्राण के पालन-पोषण में आसक्त होकर दुःखसागर में गोते लगाने लगा। वह मन्द सुगन्धित द्रव्यों को
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