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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा एकत्रित कर उसकी निर्माण प्रक्रिया में रात-दिन व्याकुल बना रहता। इससे उसकी शान्ति नष्ट हो गई और उसका मन विक्षुब्ध रहने लगा। वह मूर्ख दुर्गन्ध से बचने के लिये दुर्गन्ध-नाशक साधनों को एकत्रित करने के लिये सर्वदा खिन्न-मनस्क रहता। वह 'शान्ति का सुख क्या है ?' यह भी नहीं जानता था। इस कारण विवेकीजन उस पर हँसते थे । तदपि वह मोहदोष के कारण घ्राण के पालन-पोषण में प्रगाढासक्त होकर अपने आपको पूर्ण सुखी मानता था। [४३२-४३५] १६. मोहराज और चारित्रधर्मराज का युद्ध विचार का देशाटन-अनुभव इधर बुध कुमार और धिषणा का पुत्र विचार योग्य पालन-पोषण से शनैः-शनैः युवावस्था को प्राप्त हो गया था। एक बार यह कुमार विनोद हेतु भ्रमण के लिये देशान्तरों की ओर यात्रा हेतु चल पड़ा। जिस समय भुजंगता और घ्राण का परिचय बुध कुमार से हुआ था उसी समय विचार कुमार बाह्य और आन्तरिक प्रदेशों की लम्बी यात्रा कर वापस अपने घर लौटा था। विचार के यात्रा-प्रवास से लौटने पर उसकी माता धिषणा, पिता बुध और समस्त राजपरिवार को अत्यधिक प्रानन्द हुआ और इस प्रसन्नता के समय में उन्होंने एक बड़ा उत्सव मनाया। इसी उत्सव में विचार को पता लगा कि पिताजी और चाचाजी की घ्राण से मित्रता हुई है, अत: उसने अपने पिताजी को एकान्त में ले जाकर हाथ जोड़कर विनयपूर्वक कहा :- [४३६-४४०] पिताजी ! मैं छोटे मुह बड़ी बात नहीं करना चाहता, किन्तु आप दोनों की घ्राण से जो मित्रता हुई है, वह योग्य नहीं है। वह अच्छा व्यक्ति नहीं है, महादुष्ट हैं । क्यों ? इसका कारण आप सुनें । पिताश्री ! आप जानते हैं कि मैं आपको और माताजी को पूछे बिना देश-दर्शन की कामना से भ्रमण के लिये यहाँ से चला गया था। तात ! मैंने भूमण्डल पर भ्रमण करते हुए अनेक ग्राम, नगर, कस्बों की रमणीयता का दर्शन किया। अन्यदा मैं घूमता हुआ भवचक्र नगर में पहुँचा। मार्गानुसारिता मौसी से मिलन इस नगर के राज्य-मार्ग पर मैंने एक सुन्दरी को देखा। मुझे देखकर इस विशालाक्षी सुन्दर ललना को अतिशय प्रसन्नता और अवर्णनीय नवीन रस का अनुभव हुआ । जैसे कल्पवृक्ष की मंजरी को अमृत के छींटे देने पर, धन-गर्जन से हर्षित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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