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प्रस्ताव ५ घ्राण परिचय : भुजंगता के खेल
यह सुनकर बुध ने कहा- हाँ, भाई ! तेरी बात ठीक है । इन दोनों द्वारों के बीच जो मोटी शिला दिखाई देती है, उसे गुफा को दो भागों में बाँटने के लिये ही प्रयुक्त किया गया है । [ ३७६- ३८० ]
प्राण एवं भुजंगता का परिचय
बुध और मन्द इस प्रकार वार्तालाप कर ही रहे थे कि गुफा द्वार में से एक चपल आकृति वाली बालिका बाहर आई । बाहर आते ही बालिका ने दोनों राजपुत्रों को प्रणाम किया, चरण छुए और चेहरे पर अत्यन्त स्नेह और प्रेम के भाव प्रदर्शित करते हुए बोली- ग्रहा ! आपका सुस्वागत ! आपकी मुझ पर बड़ी कृपा है । आपने यहाँ पधार कर सुधि लेकर मुझ पर महती कृपा की है ।
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इस रूपवती बाला का मधुर सम्भाषण सुनकर मन्द मन में बहुत सन्तुष्ट हुआ । उसके वाक्चातुर्य और भाषण - कुशलता से मन्द उसके प्रति आकर्षित हुआ । उत्तर में वह स्नेहपूर्वक नम्रता से बोला - हे सुलोचने ! तुम कौन हो और किस कारण से इस गुफा में रहती हो ? हमें बताओ । [ ३८१ - ३८५ ]
मन्द कुमार के वचन सुनते ही वह बाला शोकावेश में मूर्च्छित एवं चेतनाशून्य होकर जमीन पर गिर पड़ी । उसकी दशा देखकर मन्द की उसके प्रति प्रासक्ति और बढ़ गई । उसकी मूर्छा भंग करने के लिये वह हवा करने लगा और ठंडे पानी के छींटे देने लगा । चेतना आने पर बाला के नेत्रों से बड़े-बड़े मोतियों के समान
बिन्दु टपकने लगे । मन्द द्वारा पुनः पुनः शोक का कारण पूछने पर उसने स्नेह से गद्गद स्वर में कहा- अरे नाथ ! मैं वास्तव में मन्दभागिनी हूँ कि आप दोनों मेरे स्वामी होकर भी मुझे भूल गये, मेरे शोक का इससे बड़ा क्या कारण हो सकता है ? मेरे देव ! मैं प्राप दोनों की सेविका भुजंगता हूँ । आपने स्वयं ही तो मेरी नियुक्ति इस नासिका महागुफा में की थी । इसी गुफा में ग्राप दोनों का प्राणप्रिय मित्र प्रारण रहता है, जिसकी परिचारिका बनकर मैं आपकी आज्ञा से ही यहाँ रहती हूँ । आप दोनों की धारण के साथ चिरकालीन मित्रता है । यह मित्रता कब और कैसे हुई, हे नाथ ! इस बारे में बताती हूँ, ग्राप सुनें । [ ३८६-३ε२] पूर्व इतिहास
बहुत समय पहले आप दोनों असंव्यवहार नगर में रहते थे, जहाँ कर्मपरिणाम राजा का शासन चलता था । उसी की प्राज्ञा से पहले आपको वहाँ से हटाकर एकाक्ष संस्थान नगर में लाया गया, फिर आप दोनों प्राणियों से व्याप्त विकलाक्ष नगर में आये । * आपको स्मरण होगा कि इस नगर में तीन मोहल्ले थे । त्रिकरण नामक दूसरे मोहल्ले में बहुत से कुलपुत्र रहते थे । वहाँ आप दोनों भी रहते थे । जब आप दोनों वहाँ रहते थे तब कर्मपरिणाम राजा ने आप पर प्रसन्न होकर आप दोनों को यह गुफा और उसका रक्षक घ्राण नामक मित्र दिया था । यह घ्राण मित्र और हितकारी है ऐसा आप दोनों मानते थे । उसके बाद से ही
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