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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
तो मनुष्य लोक में दिखाई देने वाले साधारण पुरुषों से अत्यन्त भिन्न प्रकार का अलौकिक ही लगता है। जिन महात्मा पुरुषों का चित्तरत्न ही ऐसा अमूल्य एवं असाधारण हो गया हो, उन्हें बाह्य निर्जीव रत्नों से प्रयोजन भी क्या है ? वास्तव में अनेक भवों से जिन्होंने धर्म कार्यों से अपने चित्त को रंग लिया हो, ऐसे पुण्यशाली जीवों का ही चित्त ऐसा होता है। जो प्राणी सर्वदा पापी, शुद्ध धर्म से बहिष्कृत और तुच्छ-वृत्ति के होते हैं, उनका ऐसा निर्मल चित्त कदापि नहीं हो सकता।
[१६४-२०१] विमल का परिचय
उपरोक्त विचारानन्तर रत्नचूड ने पुनः विचार किया कि, मुझे इस कुमार के सम्बन्ध में पूरा पता लगाना चाहिये कि यह कहाँ का निवासी है ? क्या नाम है ? इसके पिता कौन हैं ? इसका गोत्र क्या है ? यह यहाँ क्यों आया है और इसका व्यवहार कैसा है ? इस बारे में मुझे कुमार के मित्र से पूछना चाहिये । ऐसा विचार कर समाधान हेतु रत्नचूड मुझे एकान्त में ले गया और मुझ से सब बातें पूछीं। मैंने (वामदेव के रूप में संसारी जीव ने) कहा कि यहीं पास ही वर्धमानपुर नामक नगर है, जहाँ क्षत्रिय कुलोत्पन्न धवल राजा राज्य करते हैं, यह विमल उनका पुत्र है । आज प्रातः उसने मुझसे कहा कि लोगों से ऐसा सुना है कि अपने नगर के बाहर एक क्रीड़ानन्दन नामक अत्यधिक रमणीय उद्यान है। यह उद्यान हमने पहले कभी नहीं देखा, इसलिये चलो आज इसे ही देखें । कुमार की इच्छा और आज्ञा को मान देकर हम दोनों इस उद्यान में आये। फिर हमने दूर से आप दोनों के शब्द सुने । शब्द किसके हैं ? यह जानने की जिज्ञासा हुई, अतः हम उस ओर चल पड़े जिस दिशा से शब्द आ रहे थे। चलते-चलते हमें पृथ्वीतल पर दो प्रकार के पांवों के निशान दिखाई दिये, जिससे हम जान गये कि कोई स्त्री-पुरुष इधर से गये हैं। फिर आगे बढ़कर हमने लतामण्डप में आप दोनों को देखा । विमलकुमार सामुद्रिक शास्त्र के माध्यम से मनुष्य के लक्षण भली प्रकार जानता है, अत: उसने उन लक्षणों के आधार से बताया कि इनमें से जो पुरुष है वह चक्रवर्ती बनेगा और साथ में जो स्त्री है वह चक्रवर्ती की पत्नी बनेगी। इस प्रकार हमारा यहाँ आने का यही प्रयोजन था। कुमार का समग्र व्यवहार विद्वानों द्वारा प्रशंसनीय है, लोग उसका सन्मान करते हैं, वह बन्धुत्रों में प्राह्लाद उत्पन्न करता है, मित्रों को उसका व्यवहार प्रिय है और मुनिगण भी उसके व्यवहार की स्पृहा करते हैं। अभी तक इसने किसी भी तत्त्व ज्ञान के मत को स्वीकार नहीं किया है।
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