________________
प्रस्ताव ५ : रत्नचूड की आत्मकथा
छिलके खाने जैसा हो गया । बेचारी अकेली अाम्रमजरी तो भय से ही मर गई होगो, अथवा चपल उसे अकेली देखकर अवश्य हो पकड़ कर ले गया होगा।
[१८१-१८२] अरे ! मैंने यह कैसा बिना सोचे-विचारे काम किया ! अवश्य ही वह पापी उसे उठा ले गया होगा और लेकर न जाने कहाँ चला गया होगा । अब वह दुरात्मा पापी चपल कहाँ गया होगा ? खैर, चल कर देवू तो सही । ऐसा सोचकर त्वरित गति से मैं वहाँ से लौटा। मैं थोड़ा ही चला था कि चपल मुझे सामने आता हुआ मिला। चपल को पराजय
दूर से चपल को आते देखकर ही मेरे मन में अनेक तर्क-वितर्क उठने लगे। मैं सोचने लगा कि, अरे ! यह चपल यहाँ कैसे आ गया? क्या प्राम्रमञ्जरी इस पापी को दिखाई ही नहीं दी ? अथवा कहीं उसने इसकी विषयसुख भोगने की इच्छा का विरोध किया हो और इस पापी ने उसे मार ही न दिया हो ! कुछ भी हो यह तो निश्चित है कि यदि अाम्रमञ्जरी जीवित होती और इस पापी के हाथ में आने जैसी होती तो यह उसे छोड़कर यहाँ अचल के पीछे नहीं पाता । कहा भी है :
एकान्त स्थान में ढक्कन रहित दही से भरी हुई मटकी को देखकर और दही के स्वाद को जानते हुए भी, ऐसा कौनसा मूर्ख कौवा होगा जो उसे छोड़कर अन्य स्थान को जायेगा? [१८३]
इससे अनुमान होता है कि अाम्रमजरी जीवित ही नहीं है । यदि वह जीवित होती तो उसे छोड़कर चपल यहाँ कदापि नहीं आता। मैं मेरे मन में ऐसी ही अनेक प्रकार की सच्ची-झूठी आशंकायें कर रहा था तब तक चपल मेरे पास आ गया। वह शीघ्र ही मुझ से युद्ध करने लगा । उसे भी मैंने अचल की ही भांति पराजित कर जमीन पर गिराया और उसकी भी अचल जैसी ही गति हई।
__ अचल और चपल दोनों को हराकर मैं सोचने लगा कि क्या मेरी प्रिय पत्नी मर गई है ? क्या उसे किसी ने नष्ट कर दिया है या कहीं छुपा कर रख दिया है ? या उसे किसी अन्य के हाथ में सौंप दिया है ? इस प्रकार प्रिय पत्नी के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की कुविकल्प विचार रूपी तरंगमालाओं के मध्य मन रूपी नदी में डूबता-उतराता मैं यहाँ आ पहुँचा । स्नेह शंकाशील होता ही है । यहाँ आते ही मैंने अपनी प्रिया को पूर्णरूप से सुरक्षित देखा तो मेरे जी में जी आया, मेरा हृदय प्रफुल्लित हुआ, मेरे सम्पूर्ण शरीर में प्रानन्द व्याप्त हो गया, मेरा रोम-रोम पुल. कित हो गया, मेरी चेतना स्थिर हो गई, मेरे सारे शरीर में शांति हो शांति व्याप्त हो गई और हर्ष से मेरा शरीर उद्वेलित हो उठा। मेरे चित्त में जो उद्वेग था, वह समाप्त हुआ । मेरी प्रियतमा ने आपके विषय में मुझे सब कुछ बताया तथा आपके माहात्म्य से कैसी अद्भुत घटना घटित हुई थी उस सब का वर्णन किया।
इस प्रकार संक्षेप में मेरी आत्मकथा समाप्त हुई, कहकर रत्नचूड ने अपना कथन समाप्त किया।
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only