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________________ प्रस्ताव ५ : रत्नचूड की आत्मकथा २३ ने मेरे लक्षण देखकर मेरे पिता और मेरे मामा से कहा कि तुम्हारा यह बालक एक दिन विद्याधरों का चक्रवर्ती बनेगा। [१७५.-१७८] रत्नचूड-आम्रमजरी का लग्न : अचल-चपल का द्वेष और प्रपञ्च इसी बीच मैंने (वामदेव) कहा-कूमार! तुमने इसके लक्षण देखकर कहा था कि यह पुरुष चक्रवर्ती होगा, पूर्ण सत्य है । मेरी बात सुनकर विमल ने कहामित्र वामदेव ! मैंने जो कुछ कहा वह मेरा मनगढन्त कथन नहीं था, किन्तु आगम-वचन था । आगम-वचन सत्य ही होते हैं, अतः इसमें विसंवाद या संशय को स्थान ही प्राप्त नहीं होता । रत्नचूड पुन: कहने लगा-- मैं और मेरे मामा एक धर्म को मानने वाले होने से सार्मिक (सहधर्मी) थे। उनके विचारों के अनुसार मैं सुलक्षणों (योग्य लक्षणों) से युक्त था अतः उन्होंने अपनी पुत्री आम्रमंजरी का विवाह मेरे साथ कर दिया। मेरी मौसी के लड़के अचल और चपल को यह बात अच्छी नहीं लगने से वे कुपित हो गये और ईर्ष्यावश मुझे नीचा दिखाने के अनेक प्रयत्न करने लगे, पर वे अपने प्रयत्नों में सफल नहीं हुए। तब वे मुझे हराने के लिये तुच्छ प्रपञ्च करने लगे और मेरे दोष ढूढ़ने लगे। जब मुझे उनके प्रपञ्चों का पता लगा तब यह सोच कर कि कहीं असावधानी में मेरी हत्या न हो जाय, मैंने उनके कार्यों पर दृष्टि रखने के लिये मुखर नामक गुप्तचर को नियुक्त किया जो उनके षड्यन्त्रों का पता लगा कर मुझे सूचित करता रहता था। एक बार उस मुखर गुप्तचर ने मुझे सूचित किया कि अचल और चपल ने महान् प्रयास से किसी के पास से काली नामक विद्या प्राप्त की है और अब वे उसे सिद्ध करने के लिये किसी गुप्त स्थान पर गये हैं। मैंने अपने गुप्तचर से कहा--भद्र ! जब वे इस विद्या को सिद्ध कर वापिस लौटें तब मुझे सूचित करना । मुखर ने मेरी आज्ञा शिरोधार्य की। आज प्रात: मेरा गुप्तचर वापिस मेरे पास आया और मुझे बतलाया कि, देव ! अचल और चपल काली विद्या सिद्ध कर वापिस लौट आये हैं। उनके बीच जो गुप्त संकेत वार्ता हुई थी उसे मेरे गुप्तचर ने समझ लिया था और उसने मुझे बताया कि गुप्तमन्त्रणा करते हुए अचल ने कहा-'भाई चपल ! मैं रत्नचूड के साथ युद्ध करूंगा उस समय तू आम्रमंजरी का हरण कर लेना।' हे कुमार ! अब आगे आप जैसा उचित समझें वैसा करे । गुप्तचर की बात सुनकर मैंने विचार किया कि यद्यपि ये दोनों विद्या से शक्तिमान बन गये हैं तथापि मैं इन्हें हराने में समर्थ हूँ, परन्तु ये दोनों अचल और चपल मेरी मौसी के लड़के होने से मेरे भाई हैं। अतः इन्हें मारना तो उचित नहीं है, क्योंकि इससे मेरा लोकापवाद (लोगों में मेरी निन्दा होगी) और धर्म का नाश होगा । किन्तु, यह चपल तो दुष्टाचरण और दुष्ट प्रकृति वाला है। यदि वह छलकपट द्वारा मेरी पत्नी आम्रमञ्जरी को उठाकर ले जाय और उसे मार दे या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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