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________________ प्रस्तावना होती है, वैसी ही कठिनाई से मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। किन्तु, मनुष्य भव में भी, हिंसा, क्रोध, आदि दुर्गुण इस तरह पीछे पड़े रहते हैं, जैसे धन के भण्डार पर वैताल पीछे पड़ा रहता है। इन सबसे, वह पीड़ित होकर, महामोह की प्रगाढ़ निद्रा में पड़ा रह जाता है, और अपने मनुष्य भव को निरर्थक खो देता है। जो व्यक्ति, जिनवाणी रूप प्रदीप के द्वारा अनन्त भव-प्रपञ्च को भलीभांति जानते हैं, वे भी, महामोह के वशीभूत होकर मूों की तरह दूसरों को उपताप, संताप देते हैं, गर्व में डूब जाते हैं, दूसरों को ठगते हैं, धनलिप्सा में डूबे रहते हैं, प्राणियों की हिंसा करते हैं, विषयभोगों में प्रासक्त रहते हैं, वे सबके सब भाग्यहीन प्राणी हैं । ऐसे व्यक्तियों को भी, मनुष्य भव, मोक्ष तक पहुंचाने का कारण नहीं बन पाता, बल्कि अनन्त दुःखों से भरपूर भव-प्रपञ्च (संसार-परम्परा) की वृद्धि कराने वाला हो जाता है। इस भव-प्रपञ्च विस्तार के नमूनों के रूप में, पूरी ‘उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' में से किसी भी एक कथानक को पढ़ा जा सकता है, और समझा जा सकता है। सहज और सरल तरीके से, संक्षेप में ज्ञान करने के लिये, इस ग्रन्थ के आठवें प्रस्ताव में, शङ्खनगर के महाराजा महागिरि, और उनकी रानी भद्रा के बेटे 'सिंह' का कथानक पढ़ा जा सकता है । इस संसार में चार प्रकार के पुरुष होते हैं। ये हैं-जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट और उत्कृष्टतम । इनका स्वरूप इस तरह से समझना चाहिए। उत्कृष्टतम प्राणी वे हैं जो संसार अटवी से विरक्त होकर, पापरहित होकर, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके समस्त कर्मों का नाश करते हैं और मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं । उत्कृष्ट प्राणी वे हैं-जो विगतस्पृह होकर, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हैं, दोषों का संचय नहीं करते, शरीर का और इसके हर अंग का उपयोग धर्म की आराधना में करते हैं, और मोक्षमार्ग की ओर प्रयारण करते हैं। मध्यम पुरुष वे हैं-जो, अपनी इन्द्रियों की प्रवृत्ति को सहज रूप में बनाये रखते हैं, उनके विषय-भोगों में आसक्ति नहीं रखते, और कषाय आदि के दुष्प्रभाव में होने पर भी लोक-विरुद्ध, नीति-विरुद्ध, धर्मविरुद्ध आचरण नहीं करते । और, जघन्य पुरुष वे हैं जो इस संसार में, संसार के विषय भोगों में गाढ़ प्रासक्ति रखते हुए अपनी इन्द्रियों की और अन्तःकरणों की प्रवृत्ति बनाए रखते हैं। इनमें से, उत्कृष्टतम कोटि के पुरुष, मुक्ति को प्राप्त होते हैं। उत्कृष्ट पुरुष, मुक्ति पाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। मध्यम पुरुष, न तो मुक्ति के लिए १. उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा-प्रस्ताव-३ पृष्ठ २७६-८६ २ उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा-प्रस्ताव ८, पृष्ठ ७२८-७३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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