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उपमिति भव-प्रपंच कथा
श्रौर उनके जैसा आचरण करे तो यह दुष्ट रसना तेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती । अतः वत्स ! मेरा परामर्श है कि तू विवेक पर्वत पर प्रयत्न पूर्वक चढ़ जा और रसना के सकल दोषों से दूर रहकर अपने कुटुम्ब के साथ वहाँ रह । यद्यपि तेरे कुटुम्ब के साथ तेरी स्त्री रसना भी वहीं रहेगी, पर वह तुझे किसी प्रकार की पीड़ा नहीं दे सकेगो । [३४३-३४७]
विचक्षण ने फिर पूछा - पिताजी ! विवेक पर्वत तो यहाँ से बहुत दूर हैं । इतनी दूर सारे परिवार को लेकर मैं किस प्रकार जाऊँ ? इतनी दूर जाने के लिये मैं कैसे उत्साहित हो सकता हूँ ? [ ३४८ ]
विमलालोक अञ्जन का प्रयोग
उत्तर में शुभोदय महाराज बोले- प्रिय विचक्षण ! विमर्श तो चिन्तामग रत्न के समान तेरा अतुलनीय बन्धु है, अतः विमर्श जैसे साले के होते हुए किसी प्रकार की चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है ? वत्स ! उसके पास एक ऐसा श्रञ्जन है जिसे आँखों में लगाने से, उसके अद्भुत प्रभाव से वह इस विवेक महापर्वत का दर्शन यहाँ बैठे-बैठे ही करवा सकता है, तुझे इतनी दूर जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । [३४६- ३५० ]
उपर्युक्त बात चल हो रही थी कि बीच में ही प्रकर्ष बोल उठा - हाँ, पिताजी ! यह सत्य है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । इस योगाञ्जन की शक्ति का मुझे भी भवचक्रपुर में अनुभव हुआ है । अधिक क्या कहूँ ? जब तक इस असाधारण शक्तिशाली अञ्जन का प्रयोग न किया जाय तब तक विवेक पर्वत, जैनपुर आदि बराबर दिखाई नहीं देते, परन्तु इस विमला लोक अञ्जन के प्रयोग से नगर, पर्वत आदि सब स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं: वे दूर भी नहीं लगते, सर्वत्र दिखाई देते हैं. यह इस अञ्जन का ही महा प्रभाव है । [३५१-३५३]
यह सुनकर विचक्षरण ने विमर्श से कहा - विमर्श ! यदि तेरे पास ऐसा ग्रञ्जन हो तो तू मुझे उसे अवश्य शीघ्र ही दे दे, जिससे मेरी चिन्ता दूर हो और मैं शीघ्र अपनी इच्छा पूर्ण कर सकू । [३५४]
विमर्श ने अपने जीजा पर अनुग्रह करने की दृष्टि से उसे प्रादर पूर्वक विमला लोक अञ्जन प्रदान किया । उस अञ्जन का प्रयोग करते ही तुरन्त उसे सभी कुछ अपने सामने स्पष्ट दिखाई देने लगा । विचक्षण ने देखा कि सैकड़ों लोगों से भरा हुआ सात्विक - मानसपुर, निर्मल एवं उत्तुंग विवेक पर्वत और उसका रमणीय श्रप्रमत्तत्व शिखर, जैनपुर और उसमें रहने वाले श्रमणपुंगव, नगर के मध्यस्थित चित्त समाधान मण्डप, निःस्पृहता वेदी, सुन्दरतम जीववीर्य सिंहासन और उस पर * पृष्ठ ४६०
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