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________________ प्रस्ताव ४ : रसना, विचक्षण और जड़कुमार ६४३ तरह एक शूर नामक क्षत्रिय के घर में घुसा। अन्दर जाकर उसने देखा कि क्षत्रिय का बालक सो रहा था। उसने क्षत्रिय के बच्चे को उठाया और बाहर निकलने लगा कि शूर ने उसे देख लिया। उसे देखते ही शूर को उस पर प्रचण्ड क्रोध उत्पन्न हुआ और उसने जोर से चिल्लाना शुरु किया जिससे पास-पड़ोस के सगे-सम्बन्धी इकट्ठे हो गये और उन्होंने जड़कुमार को खूब मारा फिर बांध कर लाठियों और मुद्गरों से उसे अधमरा कर दिया। उसे इतनी अधिक मार पड़ी कि उसी रात उसी घर में मार की भयंकर पीड़ा से उसकी मृत्यु हो गयी । दूसरे दिन प्रात: जब जड़ की मृत्यु के समाचार फैले तो लोग अत्यन्त प्रसन्न हुए। जड़ के भाइयों ने और स्वयं राजा ने शूर को कोई दण्ड नहीं दिया, यहाँ तक कि उससे कुछ पूछा भी नहीं। जड़ के पारिवारिक जन सोचने लगे कि जड़ कुल को कलंकित करने वाला और सभी को लज्जित करने वाला था, ऐसे महानीच पापी को मार कर शूर ने बहुत अच्छा किया। विचक्षरण का विरतिभाव [३३२-३३६] जड़कुमार की घटना को सुनकर और देखकर विचक्षण का मन अधिक निर्मल हो गया। वह सोचने लगा कि, 'अहो ! रसना में प्रासक्त जड़कुमार को इसी भव में कैसा कठोर दण्ड मिला। परलोक में तो उसकी और भी भयंकर दुर्गति होगी।' इस विचारधारा ने उसको रसना के प्रति अत्यधिक विरक्त बना दिया। यह घटना विमर्श और प्रकर्ष के लौटने के पहले ही हो चुकी थी। इस घटना के पश्चात् वह रसना की मूलोत्पत्ति के बारे में क्या खबर लेकर उसका साला लौटता है, इसकी उत्सुकता पूर्वक राह देखने लगा। जब विमर्श ने राज्यसभा में रसना की मूल-शुद्धि (उत्पत्ति) के बारे में सविस्तर वर्णन किया तब उसे सुनकर विचक्षण ने तुरन्त रसना का त्याग करने का अपने मन में निर्णय कर लिया। अपने निर्णय को सूचित करने के लिये उसने अपने पिताजी से कहा-पिताजी ! रसना कैसे भयंकर कटु फल देने वाली है यह तो हमने जड़ की घटना से जान ही लिया है। अब तो यह भी मालूम हो गया है कि वह रागकेसरी के मंत्री दोषों के समूह विषयाभिलाष की पुत्री है, अत: यदि आप आज्ञा दें तो अब मैं इस अघम कुलोत्पन्न दुष्ट स्त्री का सर्वथा त्याग कर दूं। [३३७-३४२] शुभोदय का निर्देश पुत्र की बात सुनकर शभोदय महाराजा ने कहा-प्रिय विचक्षण ! संसार को विदित हो चका है कि रसना तुम्हारी स्त्री है, अतः उसे एकाएक छोड़ देना अनुचित है । वत्स ! यदि तुम्हें इसका त्याग करना ही है तो क्रमश: धीरे-धीरे सर्वथा त्याग करो। इसके सम्बन्ध में अभी तुम्हें क्या करना है वह भी ठीक से समझाता हूँ, सुनो । विमर्श की बात से तुम्हारे ध्यान में आया होगा क विवेक पर्वत पर महामोह आदि राजाओं का नाश करने वाले श्रमरण श्रेष्ठ रहते हैं। यदि तू उनके साथ रहे * पृष्ठ ४५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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