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________________ ३८. रसना, विचक्षण और जड़कुमार जड़ की प्रासुरी वृत्ति : मरण विचक्षण का भाई जड़कुमार लोलुपता के कथन को सत्य मानकर रसना का पोषण मांस-मद्य आदि से भली प्रकार कर रहा था। वह उसमें इतना अधिक गद्ध हो गया था कि उसे दूसरे किसी विषय में विचार करने का भी अवसर नहीं मिलता था । वह रसना में इतना अधिक प्रासक्त हो गया था कि बड़े से बड़े पाप वाले निन्दनीय कर्म करने से भी नहीं हिचकिचाता था । अपनी कुल-मर्यादा कैसी है, अपने ऊंचे कुल को ऐसे निन्दनीय कार्य से कितना कलंक लगेगा, इसका भी वह विचार नहीं करता था। [३२३-३२४] एक दिन वह मद्य के नशे में लस्त-पस्त बैठा था कि लोलुपता ने उसे एक बड़े बकरे को मारने के लिये प्रेरित किया। शराब के नशे में वह होश में नहीं था और बकरे के बदले उसने पशुपालक (ग्वाले) को मार दिया । ग्वाले की हत्या बकरा समझ कर अपने हाथ से हो गई है, यह बात जब जड़कुमार को समझ में पाई तब लोलुपता को बकरे का मांस न मिलने से उसको दुःख हो रहा होगा ऐसा सोचकर वह विचार करने लगा कि मैंने पशुओं और पक्षियों के मांस से तो रसना की लोलता को बार-बार तृप्त किया ही है पर कभी मनुष्य का मांस नहीं खिलाया है, अतः क्यों न आज उसे मनुष्य का मांस खिलाकर देख कि इससे रसना को कैसा सुखदायी संतोष होता है ? ऐसे अधम विचार से उसने जिस ग्वाले का खून किया था उसके शरीर से मांस निकाला, उसे साफ कर पकाया और लोलता को दिया। ऐसा खाद्य खाने से उसकी तुच्छ वृत्ति को विशेष पाषण मिला और रसना तथा लोलता के प्रमुदित होने से जड़ कुमार भी मन में हर्षित हुआ । [३२५-३२६] फिर तो लोलता, मनुष्य का सुन्दर मांस खिलाने के लिये जड़कुमार को बार-बार प्रेरित करने लगी। इससे जड़कुमार किसी न किसी मनुष्य को मार कर उसका मांस अपनी प्यारी रसना का खिलाने लगा । उत्साह पूर्वक स्वयं भी मनुष्य का मांस खाते-खाते वह राक्षस बन गया। उसकी अत्यन्त अधम प्रवृत्ति देखकर बालक भी उसकी निन्दा करने लगे। उसके सगे-सम्बन्धी और भाई-बन्धूयों ने भी उसका साथ छोड़ दिया और लोग बार-बार उसका अपमान करने लगे। ऐसे पाप कर्म से उसे अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक व्याधियाँ उत्पन्न हो गई। [३३०-३३१] जड़कुमार की मनुष्य के मांस-भक्षण की इच्छा दिनोदिन बढ़ने लगी। एक रात वह किसी मनुष्य को मारने की इच्छा से लोलता को साथ लेकर चोर की For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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