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________________ प्रस्ताव ४ : काय-सम्पादन-रपट ६४१ ६४१ परिवार-मिलन और कार्य-निवेदन विमर्श और प्रकर्ष चलते हए अपने देश में आ पहुँचे । राजभवन में पहँचकर जब वे शुभोदय राजा के पास पहुँचे तब उन्होंने राज्यसभा में विमर्श का सन्मान किया। राज्यसभा में महाराजा शुभोदय के साथ महारानी निजचारुता, कुमार विचक्षण और समस्त सभाजन उपस्थित थे। मामा और भाणेज ने राज्यसभा में प्रवेश करते ही शुभोदय महाराजा को भक्ति पूर्वक प्रणाम किया और दोनों विनयपूर्वक शुद्ध जमीन पर बैठ गये। विमर्श की बहिन बुद्धिदेवी जो राज्यसभा में उपस्थित थी, ने आग्रह पूर्वक भाई को खड़ा किया। वह और उसका पति विचक्षण बार-बार प्रेमपूर्वक उससे गले मिले, उसका सत्कार किया और उसके प्रति अपना प्रेम प्रदशित करते हुए आदरपूर्वक उसे अपने पास के आसन पर बिठाया। फिर दादा, दादी, माता, पिता एवं अन्य बड़े लोगों ने कुमार प्रकर्ष को आनन्द पूर्वक बुलाया, उसकी बलैयां लीं, स्नेह से अपनी गोद में बिठाया और बार-बार प्रेम से उसके मस्तक को चूमा, पुनः-पुनः कुशलक्षेम पूछा । पश्चात् शुभोदय, विचक्षण और अन्य सब लोगों ने रसना की मूलोत्पत्ति के बारे में उन्हाने क्या पता लगाया, इसके बारे में पूछा । मिलन के प्रानन्दाश्रुओं के साथ विमर्श ने रसना को खोज में अधिक समय लगने का कारण बताते हुए स्वतः अनुभूत और प्राप्त समग्र घटनाक्रम विस्तार पूर्वक राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत किया। घर से निकलने के बाद वे कितने समय तक बाह्य प्रदेश में घूमे, फिर अन्तरंग प्रदेश में घूमे, * वहाँ उन्होंने राजसचित्त और तामसचित्त नामक दो नगर देखे, फिर चित्तवृत्ति नामक भयानक जंगल देखा, वहाँ महामोह आदि राजाओं के बैठने का स्थान देखा, वहाँ रसना की मूलोत्पत्ति का उन्होंने कैसे पता लगाया वह सब वर्णन किया । रसना कैसे रागकेसरी राजा के मन्त्री विषयाभिलाष की पत्री होती है, इस विषय में उन्होंने कैसे पता लगाया, फिर कैसे वे कौतुहल पर्वक भवचक्र नगर में गये और वहाँ उन्होंने क्या-क्या देखा उसका वर्णन किया। फिर उन्होंने विवेक पर्वत पर बड़े-बड़े मुनिपुगवों के दर्शन किये, पर्वत पर चारित्रधर्मराज का स्थान कैसा सुन्दर था और उन्हें कैसा लगा, फिर वहाँ संतोष को देखकर मन में कैसे भाव उत्पन्न हए, संतोष अनेक लोगों को कैसे भवचक्र से नित्तिनगर ले जाता था आदि सभी वर्णन विमर्श ने अपने बहनोई विचक्षण और सभी सभाजनों के समक्ष विस्तार पूर्वक सुनाया। [२११-३२२] * पृष्ठ ४५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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