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________________ प्रस्ताव ४ : चारित्रधर्मराज का परिवार वस्तु नहीं है जिसके स्वरूप को यह मन्त्री नहीं जानता हो । यह मन्त्री वर्तमान, भूत और भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानता है । सामान्यतः प्रत्यक्ष भावों को ही नहीं, अपितु अति सूक्ष्म भावों को भी यह मन्त्री जानता है। अधिक क्या कहूँ ? समस्त लोक के चल-अचल प्राणियों और अनन्त पदार्थों के अथवा जीव-अजीव के समस्त द्रव्य, गुरण और पर्यायों को वह अपनी निर्मल दृष्टि से भली-भांति जानता है। वह नीति-निपुण है और महाराजा का अत्यन्त प्रिय है। राज्य के समस्त कार्यकलापों पर सूक्ष्म दृष्टि से चिन्तन करता है और राज्य के बल (सेना) का आदर भी करता है । सेनापति सम्यकदर्शन को भी यह अत्यन्त प्रिय है । इसके पास रहने पर सेनापति में भी अधिक स्थिरता आती है। ऐसा अच्छा राज्यनिष्ठ, कर्त्तव्य-परायण, लोकमान्य और सर्वग्राही मन्त्री सकल विश्व में भी नहीं है। [२१५-२१६] यह सबोध मन्त्री पूर्व वरिणत सात राजाओं में से ज्ञानावरण राजा का विशेष शत्रु है । यह ज्ञानावरण का क्षय या क्षयोपशम के रूप में दो प्रकार का माना गया है । [२२०] सबोध की पत्नी अवगति वत्स ! मन्त्री के पास बैठी हुई जो सुन्दरानना, निर्मला, सुलोचना स्त्री दिखाई देती है, वह उसकी पत्नी अवगति है। वह अपने पति के साथ एक-रूप (अभिन्न) है, पापरहित है, अत्यन्त पवित्र है और पति के स्वरूप में रहने वाली है। यह मन्त्री के प्राणों के समान उसके हृदय की प्राणेश्वरी है । [२२१-२२२] सद्बोध मंत्री के पाँच मित्र ___ सद्बोध मन्त्री के पास जो पाँच श्रेष्ठ पुरुष बैठे दिखाई दे रहे हैं वे अत्यन्त ही उत्तम और मन्त्री के अंगभूत इष्ट मित्र हैं । [२२३] . इनमें से प्रथम का नाम अभिनिबोध है। यह नगरवासियों में इन्द्रियों और मन द्वारा भली प्रकार ज्ञान उत्पन्न करता है । [२२४] भद्र ! दूसरा प्रसिद्ध पुरुष स्वय सदागम है। (यह कथा भी सदागम के समक्ष ही चल रही है, यह पाठकों के ध्यान में होगा ।) इस सदागम को आज्ञा से ही सम्पूर्ण नगर का कार्य चल रहा है, इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है । इस राज्य के भपति को समस्त कार्यों के सम्बन्ध में यह परामर्श देता है। यह वाकपट है, शेष चार मित्र तो गूगे हैं । सदागम की वाणी-कौशल को देखकर महाराज चारित्रधर्मराज बहुत प्रसन्न हए और उसी के परामर्श पर महाराजा ने सद्बोध को मन्त्री पद पर नियुक्त किया। वत्स ! यह सदागम निखिल राजाओं और जैन लोगों के समग्र बाह्य विषयों में . उत्कृष्ट कारणभत है, ऐसा समझना चाहिये । सदागम के बिना न तो चारित्रधर्मराज की सेना ही टिक सकती है और न संसार में अपने स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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