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३५. श्रमण-धर्म और गृहस्थ-धर्म
[चारित्रधर्मराज का सुन्दर वर्णन, विरतिदेवी का परिचय, महाराजा के । मित्रों की पहचान, विशाल मण्डप, आकर्षक वेदिका, भव्य सिंहासन आदि हृदय को निर्मल कर ही रहे थे, उस पर राजा के वर्णन ने प्रकर्ष को अधिक जिज्ञासु बना दिया। वह चारित्रधर्मराज के पूरे परिवार से परिचय करने को आतुर हो गया। मामा ने वर्णन आगे चलाया।] युवराज यति-धर्म (श्रमण-धर्म)
चारित्रधर्मराज के पास जो राज्यतेज से प्रदीप्त मुख वाला युवक दृष्टिगोचर हो रहा है वह महाराजा का पुत्र है यह युवराज यति-धर्म (श्रमण-धर्म) है । तुमने जो नगर के बाह्य भाग में मुनिपुंगवों को देखा था, उन्हें यह युवराज अतिशय प्रिय है । वत्स ! युवराज के आसपास जो दस मनुष्य बैठे हैं वे क्या-क्या कार्य करते हैं, तुम्हें संक्षेप में बताता हूँ, तुम समझलो। [१५१-१५३] क्षमादि दसविध यति-धर्म
१. क्षमा-वत्स ! इन दस में जो पहली स्त्री दिखाई देती है उसका नाम क्षमा है । यह क्षमा मुनियों को अत्यधिक प्रिय है। यह मुनियों को उपदेश देती है कि सदा क्रोध का निवारण करो और शान्ति धारण करो। [१५४]
२. मार्दव-वत्स ! उसके बाद जो छोटे बालक जैसा सुन्दर रूपवान प्राणी दिखाई देता है वह मार्दव के नाम से प्रसिद्ध है । वह अपनी शक्ति से साधुओं में अत्यधिक नम्रता उत्पन्न कर मद/अहंकार का नाश करता है । [१२५]
३. प्रार्जव-तीसरा बालक जैसा अति सुन्दर रूप वाला मनुष्य दिखाई देता है वह प्रार्जव के नाम से पहचाना जाता है। यह प्रशस्त बुद्धिवाले मनुष्यों में सर्वत्र सरलता (ऋजुता, लघुता) के भाव उत्पन्न करता है और उन्हें छल-छद्म रहित बनाता है। [१५६]
४. मुक्तता वत्स ! चौथी जो सुन्दर रूपवती स्त्री दिखाई देती है उसका नाम मुक्तता है। * यह मुनियों के मन को बहिरंग (द्रव्य परिग्रह) और अन्तरंग (कषाय विकारादि) भावों से तथा तृष्णा से मुक्त कराती है, निस्संग बना देती है । अर्थात् इससे बाह्य और अन्तरंग परिग्रह को छोड़ देने की शुभ प्रवृत्ति पैदा होती है। [१५७]
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