________________
६२४
उपांमति-भव-प्रपंच कथा
भा
स्वरूप को हृदय में धारण करते हैं ।) * भवचक्र निवासी अधिकांश पापी प्राणी तो इन्हें पहचानते ही नहीं, कुछ पुण्यहीन प्राणी पहचान कर भी इनकी निन्दा करते हैं। चतुर्मुख चारित्रधर्मराज महाराजा के वर्णन के बाद अब मैं उनके परिवार के बारे में बताता हूँ। [१३७-१४०] विरति महादेवी
भाई प्रकर्ष ! महाराजा के अर्धासन पर विराजमान सर्वांगसुन्दरी, सर्व परिमित अवयववाली, शुद्ध स्फटिक के समान निर्मल जो स्त्री बैठी है, यह विरति नामक महारानी है। चारित्रधर्मराज के समान यह भी समस्त गुण और वीर्य| शक्ति सम्पन्न है। यह विश्व में लोगों को आह्लाद प्रदान करने वाली और निर्वृत्ति (मोक्ष) का मार्ग बताने वाली है। महाराजा के साथ जब यह तादात्म्यरूप/एकरूप हो जाती है तब तो वे भिन्न-भिन्न दिखाई ही नहीं देते अर्थात् अभिन्न दिखाई देते हैं। [१४१-१४३] पाँच मित्र
___महाराजा के पास जो पाँच राजा बैठे हैं वे उनके विशेष अंगभूत मित्र हैं। इनमें से प्रथम का नाम सामायिक भूपति है। वत्स ! यह जैनपुरवासियों को समग्र पापों से विरति (छुटकारा) दिलाता है । भैया ! दूसरे मित्र का नाम छेदो स्थापन नृपति है, यह पापानुष्ठान समूह को विशेषरूप से रोकता है । तीसरे मित्र है नाम परिहार-विशुद्धि नरेश्वर है, इसकी आज्ञानुसार साधु १८ माह तक विशेष उग्र तप करते हैं । चौथे मित्र का नाम सूक्ष्मसंपराय नृपति है, यह प्राणियों के सूक्ष्म पापारणों का नाश करता है। पाँचवें मित्र का नाम यथाख्यात भूपति है, यह विशुद्ध, निर्मल और सारभूत मित्र है तथा समस्त पापों का नाश करने वाला है।
[१४४-१४६] __ ये पाँचों मित्र चारित्रधर्मराज महाराजा के शरीर के अंग जैसे, उनके जीवन, प्राण और सर्वस्व हैं । [१५०]
* पृष्ठ ४४८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org