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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा चोर भी, सदागम का स्वरूप देखकर उनमें विश्वस्त हो गया । वह, उनके पास गया, और उन्हें देखता ही रह गया । क्षणभर बाद, वह अांखें बन्द करके गिर पड़ा। जब उसे होश आया, तो चिल्लाने लगा-'हे नाथ ! मेरी रक्षा करें।' सदागम ने उसे अभय का आश्वासन दिया, चोर, आश्वस्त हो गया । अब, अगृहीतसङ्केता ने उस चोर से, उसके अपराध का, और राजपुरुषों द्वारा पकड़े जाने का कारण पूछा । चोर बोला-'आप पूछकर क्या करेंगी?' सदागम ने उसे निर्देश दिया-'अगृहीतसङ्कता, तेरा वृत्तान्त सुनने को उत्सुक है। अतः, इसकी जिज्ञासा शान्त करने के लिये, तू अपना सारा वृत्तान्त बतला दे।' चोर ने कहा'मैं, अपनी आपबीती घटना, सबके सामने नहीं बतलाऊंगा। किसी निर्जन स्थान में चलें। सदागम के इशारे से, सब लोग उठकर चले गये । इन लोगों के साथ, प्रज्ञाविशाला भी उठकर जाने लगी, तो सदागम ने उसे वहीं बैठे रहने के लिए कहा। सुमति राजपुत्र भी वहीं बैठा रहा । पश्चात्, अगृहीतसङ्कता को लक्ष्य कर के, वह 'संसारी जीव' चोर, अपना वृत्तान्त सुनाने लगा। मेरी पत्नी, 'भवितव्यता' मुझे 'असंव्यवहार' नगर के 'निगोद' नामक एक कमरे में से निकाल कर 'एकाक्षनिवास' नगर में ले पाती है। यहाँ मुझे 'वनस्पति' नाम दिया जाता है । यहाँ, मैं 'साधारण शरीर' नामक कमरे में मदमत्त, मूच्छित, मृत की तरह श्वांस लेता पड़ा रहा । फिर कुछ दिनों बाद, यहाँ से निकाल कर, एकाक्षनगर में ही किसी दूसरे मुहल्ले के दूसरे विभाग में 'प्रत्येकचारी' के रूप में असंख्यकाल तक रखा । इसी तरह के वृत्तान्त सुनाता हुअा वह, अपने वर्तमान जन्म तक आ पहुँचता है । इन प्रारम्भिक घटनाक्रमों के वर्णन में, जो द्वैविध्य, शुरु से ही कथानक में उभरता है, उसका रहस्य, कथा के आठवें प्रस्ताव में पहुँचने पर खुलता है । इस तरह, इस महाकथा का लम्बा-चौड़ा कथानक, दूसरे प्रस्ताव से शुरु होता है और आठवें प्रस्ताव के प्रारम्भ तक अपनी रहस्यात्मकता को बनाये रखता है। प्रथम प्रस्ताव, पीठबंध में, ग्रन्थकार ने अपनी निजी कथा-व्यथा लिखी है । इस प्रात्म-कथा का महत्त्व, इसलिए मूल्यवान् बन गया कि वह भी रूपक-पद्धति में, रहस्यात्मक-प्रतीक शब्दावली द्वारा व्यक्त की गई है। जिससे, मूलकथा को रहस्यात्मकता में पहुँचने के पूर्व ही, पाठक का प्रौढ मन, कथाकार की प्रतीकात्मक शब्दावली के गूढ़ प्राशयों को समझने की निपुणता प्राप्त कर लेता है। बाद के प्रस्तावों में वरिणत कथाक्रम का सार-सकेत इस प्रकार है । तीसरे प्रस्ताव में-जयस्थल नगरी के राजा पद्म और उनकी महारानी नन्दा के बेटे राजकुमार नन्दिवर्द्धन के रूप में, अनुसुन्दर का जीव, जन्म लेता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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