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प्रस्ताव ४ : सात पिशाचिनें
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निष्फल कर देता है । फिर तो प्राणी रोता है, पछताता है, यह मानकर कि अपने प्रयत्न से जो धन उसे प्राप्त होने वाला था वह उसी का था। उसके न मिलने से मन में अत्यधिक खेद होता है और दूसरों का धन चुरा लेने या हड़प लेने का प्रयत्न करता है । अपने पास एक फूटी कौड़ी भी न होने से कल घी, तेल, अनाज, ईधन आदि लाने के लिये पैसे कहाँ से पायेंगे, ऐसी कुटुम्ब की चिन्ता से दग्ध होने के कारण बेचारे को रात में नींद भो नहीं पाती। इस चिन्ता से धन की प्राप्ति हेतु वह न करने योग्य कार्य करता है, धर्म-कर्म से विमुख हो जाता है । वह लोगों में लघुता प्राप्त करता है और उसकी गिनती तृण से भी तुच्छ होने लगती है। वह दूसरों का नौकर, चपरासी, दीन-हीन, भूख से अस्थिपिंजर, मैला-कुचैला, देखने मात्र से घृणा पैदा करने वाला और सेकड़ों दुःखों से ग्रस्त होकर प्रत्यक्ष नारकीय जीव जैसा दिखाई देने लगता है । ऐश्वर्य का नाश कर जब दरिद्रता प्राणी का आलिंगन करतो है तब उसे जीवित होने पर भी मृत समान ही बना देती है । [२३३-२४६] ७. दुर्भगता [दौर्भाग्य]
वत्स प्रकर्ष ! तेरे सन्मुख दरिद्रता के स्वरूप का संक्षेप में वर्णन किया । अब तुझे जो सब के अन्त में खड़ी है उस दुर्भगता पिशाचिन के बारे में बताता हूँ, ध्यान पूर्वक श्रवरण कर ।
कर्मपरिणाम महाराज किसी-किसी प्राणी पर रुष्ट होकर इस विशालाक्षी दुर्भगता (दौर्भाग्य) को इस भवचक्र नगर में भेजते हैं। कई बाह्य कारण भी इसको प्रेरित करते हैं, जैसे विरूपता, भद्दी प्राकृति, बुरा स्वभाव, क्रूर कर्म और कटु वचन से भी दुर्भाग्य निकट आता है, पर ये इसके मूल कारण नहीं है, वास्तव में तो इसको प्रेरित करने वाला दौर्भाग्य नाम कर्म ही है। तत्त्वरहस्य को भली प्रकार समझने वाले विद्वान् पुरुष इसकी शक्ति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह प्राणी को अप्रिय, अवांछित और द्वष करने योग्य बना देती है । दीनता, अपमान, निर्लज्जता, प्रबल मानसिक दुःख, * न्यूनता, तुच्छता, लघुता, तुच्छवेश, अल्पबुद्धि, निष्फलता आदि इस दुर्भगता के पारिवारिकजन हैं। इस परिवार के बल पर बलशालिनी बनकर यह दुर्भगता इस भवचक्र नगर में जाती है और स्वच्छन्दता पूर्वक विचरण करती है।
[२४८-२५३] सुभगता
नाम कर्म महाराज ने प्रसन्न होकर इस भवचक्र नगर में लोगों को आनन्द देने वाली सूभगता नामक एक अपनी परिचारिका को भी भेज रखा है। यह परिचारिका भी अतिशय विश्रु त है। इस सुभगता के आते ही शारीरिक सौष्ठव, स्वास्थ्य, मानसिक सन्तोष, गर्व, गौरव, हर्ष, प्राशाजनक भविष्य और तिरस्कार का
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