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उपांमति-भव-प्रपंच कथा
सातवें राजा को आगे कर देता है । यद्यपि दरिद्रता का वास्तविक कारण तो पापोदय ही है, तथापि बाह्य दृष्टि से देखने पर दरिद्रता के अनेकों बाह्य कारण दिखाई देते हैं और वे ही इसके कारण हैं ऐसा लोग मानते हैं। ये बाह्य कारण कौन-कौन से हैं ? यह भी बता देता हूँ। जैसे बाढ़, आग, लुटेरे, राजा, सम्बन्धी, चोर, जुग्रा, शराब, अत्यधिक सम्भोग, वेश्यागमन, दुश्चरित्रता आदि । इसके अतिरिक्त भी जिनजिन कारणों को अपनाने से धन का नाश होता हो, उन सब को दरिद्रता को प्रेरित करने वाले हेतु समझने चाहिये । परन्तु, तत्त्व-दृष्टि से तो पापोदय सेनापति ही अन्तराय नामक सातवें राजा के द्वारा इन बाह्य कारणों को प्रवर्तित करता है, अतः वही वास्तविक कारण है । वत्स ! दरिद्रता प्राणी की कैसी दशा कर देती है, वह भी सुन । यह प्राणी को ऐसा निर्धन बना देती है कि उसे धन की गन्ध भी नहीं आ सकती, फिर भी उसे झूठी आशा के फन्दे में फंसा कर ऐसा मूर्ख बना देती है कि जिससे उसे यह पाशा बनी रहती है कि भविष्य में उसे अढलक धन प्राप्त होगा। दीनता, अनादर, मूढ़ता, अतिसन्तति, तुच्छता, भिक्षुकता, अलाभ, बुरी इच्छा, भूख, अति संताप, * पू.टुम्ब-वेदना, पीड़ा, व्याकुलता प्रादि दरिद्रता का परिवार है । अर्थात् यह दरिद्रता राक्षसी जहाँ जाती है वहाँ दीनता और भूख तो साथ ही लेकर जाती है । [२२५-२३३] ऐश्वर्य
कर्मपरिणाम राजा का दूसरा सेनापति पुण्योदय अपनी ओर से ऐश्वर्य नामक एक उत्तम पुरुष को भी यहाँ भेजता है जो लोगों को अत्यन्त आह्लादित करता है । इस ऐश्वर्य के साथ भलमनसाहत, अत्यधिक हर्ष, हृदय की विशालता, गौरव, सर्वजनप्रियता, ललितता, शुभेच्छा आदि आते हैं और प्राणी को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं। यह ऐश्वर्य लोगों में प्राणी को बड़ा और प्रादरपात्र बनाता है, सुखी बनाता है, लोकमान्य बनाता है । ऐश्वर्य यह सब सून्दर परिस्थिति खेल हो खेल में घटित कर देता है। भैया ! दरिद्रता को जब इच्छा होती है तब अपने परिवार के साथ आकर ऐश्वर्य नामक इस आह्लादक नरोत्तम को मूल से उखाड़ फेंकने की चतुराई दिखा देती है, क्योंकि दरिद्रता और ऐश्वर्य क्षण भर भी एक साथ नहीं रह सकते । दरिद्रता के त्रास से ही ऐश्वर्य भाग खड़ा होता है । ऐश्वर्य के दूर होते ही प्राणी सम्पत्तिरहित हो जाता है । दुःख से आछन्न और विकल मन वाला होकर वह बहुत विफल प्रयत्न करता है । भविष्य में धन प्राप्ति की झठी आशा के लालच से भिन्न-भिन्न उपाय करता है और फिर से धनवान बनने के लिए रात-दिन दुःखी बना रहता है । अनेक प्रकार से धन प्राप्ति के प्रयत्न करता है, किन्तु जैसे पवन का एक झौंका बादलों को बिखेर देता है वैसे ही पापोदय उसके सब प्रयत्नों को एक ही झपाटे में उलट देता है और बेचारे प्राणी के धन-प्राप्ति के सभी प्रयत्न * पृष्ठ ४२७
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