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________________ प्रस्ताव ४ : सात पिशाचिनें ५६१ कुरूपता के परिवार हैं और वे इसके साथ ही आते हैं। अपने परिवार के साथ यहाँ पाकर यह पिशाचिन अानन्द से विलास करती है और निरन्तर मन ही मन मुस्कराती रहती है । [२१०-२१२] सुरूपता इन्हीं नाम कर्म महाराजा ने प्रसन्न होकर सुरूपता नामक अपनी एक दासी को भी भवचक्र में भेज रखा है । सुरूपता को उत्पन्न करने में यद्यपि कुछ बाह्य कारण भी हैं, जैसे अच्छे और नियमित आहार-विहार से कफादि प्रकृतियाँ नियमित रहने के कारण प्राणी की प्राकृति सुन्दर बनती है, परन्तु इसका तात्त्विक कारण तो नाम महाराज द्वारा प्रेरित सुरूपता ही है। जब यह भवचक्र नगरस्थ प्राणी में प्रविष्ट होती है तब उसका रूप इतना सुन्दर और पाकर्षक बना देती है कि देखने वाले की आँखें तृप्त और हर्षित हो उठती हैं। उसकी आकृति अत्यन्त रमणीय बना देती है, नेत्र कमल जैसे और शरीर के प्रत्येक अवयव को योग्य स्थान पर शोभा देने वाला लम्बा, छोटा, मोटा या पतला आवश्यकतानुसार बना देती है। उसकी चाल हाथी की चाल जैसी मनोरम और साक्षात् देवकुमार जैसा रूप बना देती है। सुरूपता अपनी शक्ति से लोगों को आह्लादित करने वाला रूप प्रदान कर प्रसन्न होती है । सुरूपता और कुरूपता में स्वाभाविक शत्रुता है। सुरूपता का हनन कर यह राक्षसी कुरूपता योगिनी के समान प्राणियों के शरीर में प्रविष्ट होती है। कुरूपता के प्रविष्ट होने से बेचारे प्राणी सुन्दर रूप और प्राकृति से होन हाकर कुरूप बनकर ऐसे भद्दे लगते हैं कि उनके सामने देखने से भी लोगों के नेत्रों में उद्वेग पैदा हो जाता है । वे आदेय नाम कर्म-रहित हो जाते हैं जिससे कोई उनकी बात नहीं मानता । निरन्तर हीनभावना-ग्रस्त होने के कारण वे लोगों में हास्यास्पद बन जाते हैं । अपने रूप का गर्व करने वाले मूर्ख लोग उनको देखकर हंसते हैं और उनकी कुरूपता पर टीका करते हैं। इसके अतिरिक्त ठिंगने, कुबड़े आदि कुरूप लोग अधिकांश में गुणरहित भी होते हैं । व्यवहार में वे बहत अच्छे तो शायद ही हो पाते हैं, क्योंकि 'प्राकृतौ च वसन्त्येते प्रकृत्या निर्मला गुणाः' सामान्य तौर पर अच्छो , प्राकृति वाले लोगों में निर्मल गुण स्वभावतः ही पाये जाते हैं। इस प्रकार यह कुरूपता जगत में अनेक प्रकार की विडम्बना पैदा करने वाली है। इसका निरूपण संक्षेप में किया है जो तेरी समझ में आ गया होगा । [२१७-२२४] ६. दरिद्रता भाई प्रकर्ष ! अब दरिद्रता नामक छठी पिशाचिन के बारे में तुझे बताता हँ, ध्यान से सुनो। दरिद्रता को प्रेरित कर यहाँ भेजने वाला तो पापोदय नामक सेनापति ही है, जो खलता (दुष्टता) को यहाँ भेजता है वही दरिद्रता को भी भेजता है। यह अवश्य है कि पापोदय दरिद्रता को यहाँ भेजने के समय अन्तराय नामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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