________________
प्रस्ताव ४ : विवेक पर्वत से अवलोकन
- ५६६
बाद सूर्य उदय हुआ, कमल विकसित हुए, चकवों का वियोग काल पूरा हुआ और धर्म-परायण लोग प्रभु का नाम स्मरण करने लगे। [१-६] विवेक पर्वत पर
ऐसे शांत प्रभात के समय में मामा प्रकर्ष से बोला-भाई ! तुझे तो नयेनये कौतुक देखने की बहुत अभिलाषा है और यह भवचक्र नगर तो बहुत बड़ा है जहाँ नित्य नयी-नयी घटनाएं होती ही रहती हैं। अपने लौटने का समय निकट प्रा गया है, अब समय बहुत थोडा बचा है और देखने को बहुत अधिक पड़ा है। प्रत्येक स्थान को सूक्ष्मता से देखना सम्भव नहीं, अतः वत्स ! मैं कहूँ ऐसा कर जिससे थोड़े समय में अनेक कौतुक देखने की तेरी कामना पूर्ण हो जाय और मर्यादित समय में ही वापस लौट चलें। कुछ दूरी पर तुम्हें जो पर्वत दिखाई दे रहा है, वह अत्यधिक ऊंचा है, श्वेत है, स्फटिक जैसा निर्मल है, प्रभावशाली है और बहुत विस्तृत है। यह पर्वत संसार में विवेक के नाम से प्रसिद्ध है। यदि हम इस पर्वत पर चढ़कर देखेंगे तो भवचक्र नगर में होने वाली समस्त विचित्र घटनायें जो घटित होती हैं वे सभी दिखाई देंगी। अतः हे वत्स ! चलो, हम इस पर्वत पर जाकर निपुणता के साथ सभी दृश्य देखें । यदि तुम्हें कुछ समझ में न आये तो मुझे पूछ लेना, मैं तो तुम्हारे साथ ही हूँ। इस प्रकार यदि भवचक्र नगर का सारा दृश्य यदि तुम एक साथ देख लोगे तो फिर तुम्हारे मन में कोई उत्सुकता शेष नहीं रहेगी । प्रकर्ष को भी मामा की यह बात रुचिकर लगी और दोनों सन्तुष्ट होकर विवेक पर्वत पर चढ़ गये । [७-१४] कपोतक और छूत (जुमा)
प्रकर्ष-अहा मामा ! यह महागिरि तो बहुत ही रमणीय है। यहाँ से तो पूरा भवचक्र नगर चारों तरफ से दृष्टिगोचर हो रहा है । आपने तो बहुत सुन्दर उपाय बताया। मामा ! अब मैं एक बात पूछता हूँ, उसे समझाइये । देखिये, उस देवकुल (मन्दिर) में एक आदमी बिलकुल नगा, ध्यानमग्न और चारों ओर से कुछ लोगों से घिरा हुआ है । यह कंगाल जैसा, भूखा-प्यासा, बिखरे बालों वाला, हाड. पिंजर जैसा दिखाई दे रहा है, जो यहाँ से भागने के प्रयत्न में है, चारों तरफ दिङ मूढ सा देख रहा है, इसके हाथ सफेद खडी जैसे हो गये हैं और पिशाच जैसा लग रहा है, यह पुरुष कौन है ? [१५-१७]
विमर्श- वत्स ! यह अतुल धन-सम्पत्ति वाले अति प्रख्यात कुबेर सार्थवाह नामक सेठ का पुत्र कपोतक है । उस समय की अपनी स्थिति के अनुसार इसके पिता ने इसका नाम धनेश्वर रखा था जो 'यथा नाम तथा गुण' की उक्ति से ठीक ही था, क्योंकि उस समय यह अतुल सम्पत्ति का स्वामी था। वर्तमान स्थिति के अनुसार लोगों ने इसका नाम कपोतक (कबूतर जैसा भोला अथवा कुपुत्र) रखा है, जिसे इसने सच्चा कर दिखाया है। महामूल्यवान रत्नों एवं सोने से भरे हए अपने * पृष्ठ ४१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org