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प्रस्ताव ४ : रमण श्रौर गणिका
क्या है ? इस नगर में एक मदनमंजरी नामक प्रसिद्ध वेश्या है जिसके कुन्दकलिका नामक लड़की है जो रूपवती भोर यौवनमद से आपूरित है । कुन्दकलिका में आसक्त होकर इस रमण ने अपना सब घन खोया और जब यह धन-रहित हो गया तो गणिका मदनमंजरी ने उसे घर से बाहर निकाल दिया । रमरण अब भी कुन्दकलिका के साथ भोगे गये भोग को भूल नहीं सका है । न करने योग्य दूसरों का काम करके कहीं से आज इसे जैसे ही थोड़े रुपये मिले कि यह उन रुपयों को लेकर अपनी विषयवासना को तृप्त करने कुन्दकलिका के घर की तरफ निकल पड़ा है । अपने को रूपवान बनाने के लिये इसने वहाँ जाने के पहले यह सब टीप-टॉप, साज-सज्जा की है । ( चलो हम इसके पीछे चलें ) । [ २८-३८ ]
मकरध्वज का प्रभाव
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इसी समय एक पुरुष अपने अनुचरों के साथ दूर से आता हुआ और अपने तरकस में से भयंकर तोर निकाल कर खींच खींच कर मारता हुआ दिखाई दिया । इसका सुन्दर स्वरूप देखकर प्रकर्ष ने पूछा- 'अरे मामा ! मामा !! देखिये तो वह पुरुष दूर से ही इस रमण को प्रबल वेग से तीर मार रहा है, आप इसे रोकिये ना ।' विमर्श ने कहा- 'भाई ! यह तो मकरध्वज है और अपने मित्र भय के साथ रात्रि में आनन्द से नगरचर्या देखने निकल पड़ा है । सम्पूर्ण नगर में कौन उसकी प्राज्ञा का पालन करता है और कौन उसके विरुद्ध है कौन क्या कहता है, कैसा वेष धारण करता है और मन में क्या सोचता है, इस सब की वह परीक्षा करता है । हे वत्स ! यही मकरध्वज अपनी शक्ति से काम बारण विद्ध बनाकर इस पामर रमरण को बेश्या के घर ले जा रहा । हम उसे नहीं रोक सकते क्योंकि यह तो उसका कर्त्तव्य है । रमण इस समय अपने मन में जिस तीव्र विषयाभिलाषा का अनुभव कर रहा है, उसका कारण यह मकरध्वज ही है । अब इसकी क्या दशा होती है, यह देखना है । चलो, यह कौतुक देखें । [ ३६-४४]
कुन्दकलिका का बाह्यान्तर रूप
बात करते-करते मामा-भारणजे वेश्या के घर की तरफ गये । वहाँ उन्होंने दरवाजे के पास ही ठाठ-बाट से बैठी हुई प्रति चर्चित कुन्दकलिका को देखा । उसे देखकर विमर्श ने अपना नाक चढ़ाया, मुह से थूका, गर्दन हिलाई और मुँह बिगाड़ कर दूसरी तरफ फेर लिया । मामा को व्याकुल देखकर और उनके मुँह से हायहाय शब्दों के उच्चारण को सुनकर प्रकर्ष ने मामा से उद्वेग का कारण पूछा 'मामा ! आपको एकाएक ऐसा क्या बुरा लगा कि आपकी मुखाकृति में अचानक परिवर्तन हो गया ?' विमर्श ने कहा- 'भाई ! यह स्वरूपवती वेश्या सुन्दर वस्त्राभूषण और पुष्पहारों से सुशोभित होने पर भी अशुचि की कोठी (खजाना) है, क्या तू यह नहीं देख सकता ? मुझे तो इसमें से इतनी दुर्गन्ध आ रही है कि मैं उसे सहन
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